यूपी सरकार ने 34,000 कर्मियों का वेतन रोका: संपत्ति घोषित न करने पर सख्त कार्रवाई

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UP Government ने एक सख्त कदम उठाते हुए 34,000 से अधिक सरकारी कर्मियों का वेतन रोकने का आदेश दिया है। यह आदेश 1 नवंबर 2024 को जारी किया गया था, जिसमें स्पष्ट किया गया कि जो कर्मचारी अपनी संपत्तियों का विवरण नहीं देंगे, उन्हें उनके वेतन से वंचित रखा जाएगा। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, ताकि राज्य में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लिया गया यह फैसला राज्य में सरकारी कर्मियों की ईमानदारी और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है।

UP Government के इस आदेश का क्या है उद्देश्य?

UP Government ने सभी सरकारी कर्मियों को निर्देश दिया था कि वे अपनी चल और अचल संपत्तियों का विवरण राज्य सरकार के “मानव संपदा” पोर्टल पर अपलोड करें। इस आदेश का उद्देश्य कर्मियों की संपत्ति की नियमित निगरानी करना है ताकि किसी भी तरह के अवैध संपत्ति संकलन को रोका जा सके। इस प्रणाली से न केवल पारदर्शिता में बढ़ोतरी होगी, बल्कि अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों में कमी आएगी।

राज्य सरकार ने पहली बार यह आदेश 2023 में जारी किया था और 31 अगस्त 2024 तक की समय-सीमा तय की थी। परंतु, इस समय-सीमा के बाद भी हज़ारों कर्मियों ने इस निर्देश का पालन नहीं किया, जिसके चलते अब उनके वेतन को रोका गया है

वेतन रोकने के निर्णय का प्रमुख कारण क्या था ?

UP Government के इस कदम का मुख्य कारण राज्य में पारदर्शिता की मांग और भ्रष्टाचार को रोकना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार, सभी सरकारी कर्मियों की संपत्तियों की जानकारी उपलब्ध होने से किसी भी प्रकार की अनियमितता पर नजर रखी जा सकेगी। सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जो कर्मचारी संपत्ति की घोषणा नहीं करेंगे, उन्हें न केवल वेतन से वंचित किया जाएगा बल्कि उनकी पदोन्नति और अन्य लाभ भी रोके जा सकते हैं।

सरकार ने कर्मियों को बार-बार चेतावनी दी थी और उन्हें यह निर्देश भी दिया गया था कि वे समय पर अपना विवरण जमा करें। फिर भी, कुछ कर्मचारियों ने आदेश का पालन नहीं किया, जिसके चलते 1 नवंबर को सरकार ने उनके वेतन पर रोक लगाने का आदेश पारित किया।

विपक्ष का विरोध: समाजवादी पार्टी का दृष्टिकोण

सरकार के इस कदम पर विपक्षी दलों ने प्रतिक्रिया दी है। समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी नेताओं ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि बार-बार समय-सीमा बढ़ाने के बाद अब अचानक सख्त कार्रवाई करना सरकारी आदेश की कमजोर कार्यान्वयन क्षमता को दर्शाता है। विपक्ष का कहना है कि कर्मियों को समय पर पर्याप्त जानकारी और सुविधा प्रदान नहीं की गई, जिसके चलते उन्होंने समय पर अपनी संपत्तियों का विवरण जमा नहीं किया। विपक्ष ने इस फैसले को कर्मियों के हितों के खिलाफ एक सख्त कदम के रूप में देखा है।​

कर्मियों का पक्ष: क्या हैं उनकी चुनौतियाँ?

कुछ सरकारी कर्मियों का मानना है कि संपत्ति घोषणा प्रक्रिया को लेकर सरकार ने समय पर स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दिए। कई कर्मियों का दावा है कि प्रक्रिया की जटिलता और पोर्टल में तकनीकी समस्याओं के कारण वे समय पर विवरण नहीं भर सके। इसके अलावा, कर्मियों ने इस मुद्दे पर सरकार से अपील की है कि उन्हें एक और मौका दिया जाए ताकि वे अपना विवरण समय पर अपडेट कर सकें। कर्मियों की इस अपील के बावजूद, सरकार का रुख अब तक कड़ा ही बना हुआ है और वह इस मामले में कोई रियायत देने के मूड में नहीं है।

दीर्घकालिक प्रभाव: क्या यह कदम सही है?

UP Government का यह निर्णय कर्मियों के लिए एक कठोर संदेश है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की “शून्य-सहनशीलता नीति” है। यह निर्णय सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम है। हालांकि, इस आदेश को लागू करने में कठिनाइयाँ हैं और कई कर्मियों के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया रही है, लेकिन इसका उद्देश्य साफ है – एक भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करना।

UP Government का यह फैसला यूपी में सरकारी तंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण कदम है। भविष्य में यह देखा जाएगा कि अन्य राज्य भी इस मॉडल को अपनाते हैं या नहीं। सरकार का यह प्रयास यूपी में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में सहायक होगा और एक दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव छोड़ेगा।

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