
Akhilesh का दौरा: मंगलवार को सपा प्रमुख Akhilesh Yadav गाजियाबाद आए। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की। बात की। चुनावी तैयारियों की समीक्षा भी की। उन्होंने कार्यकर्ताओं औऱ नेताओं में जोश भरने के लिए दमदार भाषण भी दिया। सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय औऱ प्रदेश स्तर के नेताओं से लेकर पीएम-सीएम पर निशाना भी साधा। गाजियाबाद के मुद्दों पर भी बात की। निश्चित तौर पर उन्होंने इस दौरान मौजूद लोगों, चाहें वो कांग्रेस के हों या समाजवादी पार्टी के सभी में जोश से लबरेज करने वाली स्पीच दी।
मगर, सबसे निराशाजनक स्थिति ये थी कि चाहें कांग्रेस की बात करें या समाजवादी पार्टी की। इस बैठक के दौरान पार्टियों के नेता तो दिखे मगर कार्यकर्ता लगभग ना के बराबर थे। यही नहीं सबसे मायूसी भऱी बात जो देखने को मिली वो ये थी कि बैठक के दौरान केवल यादव तो नजर आ रहे थे, मगर न तो मुस्लिमों की कोई भारी तादात दिखी और ना ही दलितों की।
मुस्लिम दलित कार्यकर्ताओं की संख्या लगभग नाम मात्र को थी। जो कहीं न कहीं ये सोचने को मजबूर करने वाला जरूर है कि क्या सिंघराज के साथ जिस दलित वोट बैंक के जुड़ने की उम्मीद की जा रही थी, वो नहीं हो पा रहा। और मुस्लिम भी इस बार अभी तक ये तय नहीं कर सका है कि वो खड़ा हो तो किसके साथ साईकिल के, हाथी के, केतली के या फिर पतंग के। हालाकि मतदान के लिए अब सात दिन का और ज्यादा वक्त सभी दलों को मिल गया है, मगर इसका फायदा कौन कितना उठा पाएगा ये आने वाला वक्त ही तय करेगा।
Akhilesh के मंच पर वो जो खुद न जीते
Akhilesh के इस दौरे की सबसे खास बात ये रही कि उनके साथ मंच पर वो नेता दिखाई दिए जिन्होंने चुनाव तो कई लड़े, मगर आज तक कोई चुनाव नहीं जीत पाए। हालाकि अपने राजनीतिक और पारिवारिक संबंधों के बूते जनप्रतिनिधि का ढप्पा जरूर लगाने में कामयाब हो गए। ऐसे नेताओं में यदि बात समाजवादी पार्टी की करें तो उसमें सबसे पहला नाम था जितेंद्र यादव का। जितेंद्र यादव मंच पर तो Akhilesh के साथ नजर आए, मगर याद करके बताइये कि क्या वो खुद कभी कोई चुनाव जीत पाए।
यादव वोटर्स के लिहाज से मजबूत मानी जाने वाली बुलंदशहर के सिकंदराबाद की सीट पर भी वे लड़े मगर कभी कामयाबी नहीं मिली। गाजियाबाद में भी भाग्य आजमाया मगर कभी जितेंद्र का साथ उनकी किस्मत ने नहीं दिया। इसी तरह के एक औऱ नेताजी मंच पर दिखाई दिए। वो थे सिकंदर .यादव। सिकंदर हालाकि कई चुनाव लड़ चुके हैं और अलग-अलग पार्टियों में रह चुके हैं मगर जीत तो छोड़िए जीत की दौड़ में भी कभी जगह बनाने में कामयाब नहीं हो सके।
कांग्रेस से ऐसे ही नेताओं में डॉली शर्मा, सुशांत गोयल, विजेंद्र यादव, विजय चौधरी भी मंच पर थे जिन्होंने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा। हालाकि सतीश शर्मा पूर्व मंत्री भी मंच पर थे, मगर कभी कांग्रेस में रहकर वो भी जीत का स्वाद नहीं चख पाए।
मैनेजमेंट की खामियां यहां भी साफ दिखीं
एक दिन पहले ही बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की मौजूदगी में संजीव शर्मा के चुनाव को लेकर हुई पार्टी की बैठक में मैनेजमेंट जिस कदर सधा हुआ दिखाई दे रहा था ठीक उसके उलट आज Akhilesh के इस कार्यक्रम में मैनेजमेंट का अभाव हर तरफ देखने को मिल रहा था। पत्रकारों को बैठाने या उन्हें अटेंड करने के लिए कोई किसी तरह की व्यवस्था नहीं थी। जहां पत्रकारों को बीच में कैमरे लगाने के लिए जगह दी गई थी, वहां भी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता चढ़े थे।
Akhilesh से प्रेस वार्ता का मैसेज मीडिया को भेजा गया था, मगर प्रेसवार्ता के लिए किसी जगह का इंतजाम नहीं था उल्टे मीडिया को उस रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया गया जहां से अखिलेश को मंच से उतरकर जाना था। वहीं कुछ वक्त के लिए मीडिया वालों की अखिलेश से अव्यवस्थाओं के बीच बातचीत हो पाई।
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