
Crime Control Ranking: हम यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की Crime Control Ranking में प्रदेश में 18वें नंबर पर हैं। ये रेंकिंग अक्टूबर महीने की है। उससे बीते महीने सितंबर में भी बहुत पिछड़े थे, मगर किसी ने न दिखाया, न लिखा न बताया। क्योंकि बहुतों को पता नहीं चला। जिन्हें पता भी चला तो वो साहब के चाय-पानी के कर्जदार कथित पत्रकार थे। उन्होंने जानकारी के बावजूद पिंक बूथ के नाम से महिला अपराध पर साहब का खूब गुणगान किया।
वाह-वाह करना ईमानदारी का ठप्पा
अब जिले में पत्रकारिता का स्तर यही रह गया है। अफसर हों, नेता या जनप्रतिनिधि। यदि उसके हिसाब से उसके मन का गुणगान करोगे, उनकी वाहवाही दिखाओगे या छापोगे तो ईमानदार कहलाओगे।
वरना ! ब्लैकमेलर भी कहे जाओगे, और स्टाल पर अगर आपका अखबार नहीं बिकता होगा, अपनी गाढ़ी कमाई औऱ मेहनत से अपने मन और दिल की बात लोगों तक मुफ्त में पहुंचाने के बावजूद आपको साहब दुत्कार देंगे। न आपके अखबार की पूछ होगी और ना आप ईमानदार पत्रकार कहलाओगे।
आज ये है ईमानदार पत्रकारिता की परिभाषा
ईमानदार पत्रकार आज वही है, जिसके घर चार अफसर, नेता, जनप्रतिनिधि हाजिरी लगा रहे हैं। ईमानदारी की परिभाषा यही है कि जो बड़ा ऑफिस खोलकर आपके मन की खबरें छाप रहा है। आम जन, आम जनता की दिक्कतों से सरोकार रखने वाले को ब्लेकमैलर ये कहकर ठप्पा लगा दिया जाता है कि आपका अखबार मुफ्त में बिकता है। आपका अखबार स्टाल पर नहीं बिकता। यदि आप साहब का गुणगान करने लगें तो आपका अखबार स्टाल पर न हो, मुफ्त भी न बंटता हो, मगर आप बड़े पत्रकार। जब इस छोटी सोच के बड़े अफसरों की तैनाती गाजियाबाद में होगी, तो यही हाल होगा।
बीजेपी विधायक को भी कर दिया अनसुना
हम कानून व्यवस्था के मामले में सरकारी Crime Control Ranking में 18वें नंबर पर हैं। हमसे लगे हुए जिले की रेकिंग तीसरे नंबर पर है। लगातार जिले का एक विधायक जो बीजेपी से ही है, चिल्ला रहा है, मगर कौन सुने नंदकिशोर गूर्जर की ? ऊपर जो बैठे हैं, यहां से भेजी जाने वाली चापलूसी भरी खबरों की कटिंग और लिंक के जरिये योगीजी को गलत फीड बेक देकर टहला देते हैं।
अक्टूबर की Crime Control Ranking में हैं 18वें नंबर पर

हाल ही में जो सरकारी Crime Control Ranking आई है, वो सिर्फ अक्टूबर महीने की है, जबकि सितंबर महीने की रेंकिंग पर तो साहब के उन नजदीकियों ने रोशनी ही नहीं डाली जो गुलाबी योजना को लेकर साहब का गुणगान करते नहीं थके थे। गुलाबी योजना हम कह रहे हैं पुलिस के पिंक बूथ को। पिंक बूथ और महिला अपराध को लेकर न जाने कितने अखबारों ने साहब का गुणगान तो किया, मगर सितंबर महीने की क्राइम की रेंकिंग को छापने की जुर्रत नहीं की।
वजह साफ है। साहब कुछ चुंनिंदा पत्रकारों को ही पसंद करते हैं। उनके घर भी जाते हैं और उन्हें हेप्पी बर्थ डे टू यू भी करते हैं। वो सिर्फ इसलिए क्योंकि मीडिया के नाम पर ये लोग कानून व्यवस्था की उल्टी तस्वीर जनता को दिखाकर साहब के नाम की दिन-रात माला जो जपते हैं।
आखिर कब सुधरेगी मीडिया ?
ऐसा नहीं कि ये हालात आज ही देखने को मिल रहे हैं। बल्कि करीब 26 साल से इसी तरह के हालात खुद मैने देखे हैं। चंद ऐसे लोगों की वजह से जनता से लेकर सत्ता तक गलत फीडबैक जाती रही है। जिसके चलते आम-जन तो दुखी रहता है, मगर सत्ता पर काबिज लोगों को लगता है कि रामराज है। शायद यही वजह है कि योगीजी भी जब भी गाजियाबाद आते हैं तो ये कहने से नहीं चूकते कि कमिश्नरेट बनने के बाद महिलाएं सुरक्षित हैंष बेटियां महफूज हैं। मगर हकीकत क्या है ये खुद गाहे-ब-गाहे बीजेपी के लोनी विधायक नंदकिशोर गूर्जर ही बताते और जताते रहते हैं।
विपक्षियों को मिलेगा poor ranking का फायदा
गाजियाबाद में उप-चुनाव चल रहा है। जाहिर है कि ये poor ranking बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे विपक्षियों के लिए वरदान साबित होगी औऱ वो इसका इस्तेमाल जनता के बीच जाकर जमकर करेंगे। लेकिन बीजेपी उम्मीदवार को इससे होने वाली दिक्कत की वजह साहब के वही पिछलग्गू होंगे जो गलत रिपोर्ट देकर जिले में रामराज बताते हैं, दिखाते हैं और छापते हैं। हकीकत क्या है ये तो जनता ही घर-घर पहुंच रहे नेताओं को बताएगी।
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