हाल-ए-कमिश्नरेट पुलिस : आम आदमी खाता धक्के, मगर ! रसूख हो तो, 1 अपराध की 2 FIR

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Police Commissionerate: हालाकि ये कोई नहीं बात नहीं कि जैक पैसे की हो या फिर रसूखदार नेता या जनप्रतिनिधि की तुरंत काम करती है। ऐसा दशकों से होता आ रहा है। ये परंपरा तो गाजियाबाद में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद भी बदस्तूर जारी है। मगर, Ghaziabad Police Commissionerate ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है जिसे आप सुनेंगे तो रैत में पड़ जाएंगे। कानून के जानकार तो माथा पकड़ लेंगे कि ऐसा कैसे हो गया ?

ये कारनामा किया है Police Commissionerate ने

दरअसल, Ghaziabad Police Commissionerate के ग्रामीण क्षेत्र में आने वाले थाना मसूरी क्षेत्र में गांव अमीरपुर बडायना है। यहां के रहने वाले अलाउद्दीन के पुत्र अजीमुद्दीन के साथ एक वारदात हुई। वारदात कविनगर थाना क्षेत्र में हुई। अजीउद्दीन के साथ हुई वारदात की रिपोर्ट पुलिस ने एक ही दिन में दो-दो बार दर्ज कर दी।

सब हैरत में कैसे हुआ चमत्कार ?

जिसने भी सुना हैरत में रह गया कि लोगों को एक FIR दर्ज कराने के लिए भी थाने-चौकी से लेकर अफसरों के चक्कर काटने पड़ते हैं, फिर भला कैसे अजीउद्दीन के साथ हुई एक घटना की एक ही दिन में दो-दो FIR दर्ज कर ली गईं।

1 सुबह, दूसरी शाम को दर्ज हो गई FIR

दरअसल, अजीमुद्दीन की पहली एफआईआर प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 1105/24 के तहत 09-11-24 को समय 1.23 बजे Kavinagar Police ने दर्ज की। जबकि दूसरी एफआईआर भी उसी दिन शाम को प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 1111/24 के तहत समय 18.57 बजे कविनगर पुलिस ने दर्ज की।

सब कुछ एक जैसा, फिर कैसे दर्ज हुईं 2 FIR ?

इस वारदात में दर्ज हुई दोनों रिपोर्ट में घटना स्थल एचडीएफसी बैंक राजनगर का है। वारदात भी एक यानि वाहन चोरी की है। चोरी वाहन मोटरसाईकिल है और उसका नंबर भी एक है। रिपोर्ट दर्ज कराने वाले का नाम, वल्दियत, जन्मतिथि और घर का स्थाई व अश्थाई पता भी एक है। घटना की तारीख और वक्त भी एक ही है। बावजूद इसके पुलिस ने एक ही दिन में दो-दो एफआईआर दर्ज कर लीं और दोनों का क्राइम नंबर यानि प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या अलग-अलग दर्ज कर लिया।

ये कहते हैं कानून के जानकार

इस मामले में कानून के जानकार जानते हैं कि एक केस में 2 एफआईआर दर्ज होना असंभव है। सीनियर एडवोकेट खालिद खान के मुताबिक ये न तो कानूनन ठीक है और ना ही संभव, मगर इस मामले में आखिर कैसे ये हो गया। उनका कहना है कि अधिकारियों को बताना चाहिए कि आखिर किस स्तर पर ये चूक हुई है।

तो आपको बता दें कि दोनों दर्ज एफआईआर में वादी एक ही था। घटना स्थल एक था। घटना का वक्त और तारीख भी एक थी। बावजूद इसके पुलिस ने एक ही दिन में दो एफआईआर दर्ज कर दीं। अब आप सोचिए कि ये बड़ी चूक तब ही संभव हो जबकि एफआईआर दर्ज करने का भारी दवाब हो। या फिर पुलिस की मजबूरी।

सब एक था, बस बदला था तो ये...

दोनों एफआईआर में धारा 303(2) भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 है। घटना का दिन सोमवार, तारीख 04-11-24 है। रिपोर्ट दर्ज होने की तारीख भी एक ही है। सिर्फ बदला था तो इतना कि पहली एफआईआर में घटना का वक्त एक से दो बजे के बीच था जबकि दूसरी एफआईआर में ये समय दो बजे दर्ज किया गया है। पहली घटना की सूचना पुलिस ने 9-11-2024 को 1.23 बजे की अंकित की है, तो दूसरी एफआईआर में सूचना का वक्त इसी दिन शाम का बताया गया है। दोनों मुकदमों को दर्ज करने औऱ कराने वाले पुलिसकर्मी भी अलग हैं। और जीडी नंबर भी बदल गया है।

पहली एफआईआर में रोजनामचा यानि जीडी नंबर 004 अंकित है, तो दूसरी एफआईआर में ये नंबर 083 अंकित है। पहली एफआईआर को दर्ज करने वाले और रोजनामचे में चढ़वाने वालों में कांस्टेबल 776 उपनेश कुमार और 1972 महिला कांस्टेबल पूजा चौहान का नाम अंकित है जबकि दूसरी एफआईआर में जांच अधिकारी-उप-निरीक्षक देवेंद्र सिंह अंकित हैं। जबकि दूसरी रिपोर्ट में जांच अधिकारी के नाम पर निरीक्षक लिखा है। यानि पहली एफआईआर की जांच देवेंद्र सिंह दरोगाजी करेंगे तो दूसरी की जांच कोतवाल। दोनों ही जांच में जांच अफसर का नंबर एक ही अंकित किया गया है।

दूसरी एफआईआर में रिपोर्ट दर्ज करने वाले कांस्टेबल का नाम और जीडी में उसे अंकित कराने वाली महिला कांस्टेबल के बारे में कोई जिक्र नहीं है। इसके साथ ही दूसरी एफआईआर में घटना का वक्त दो बजे का दिया है जबकि पहली एफआईआर में एक से दो बजे का बताया गया है।

इसलिए पुलिस अफसरों से नहीं लिया बयान

हालाकि लापरवाही औऱ बेपरवाही से भरे इस मामले में पुलिस अधिकारियों से बात की जानी चाहिए थी। मगर इसलिए नहीं की क्योंकि एक पत्रकार के साथ बदसलूकी हो चुकी है। वो भी कथित तौर पर कमिश्नर स्तर के अफसर के द्वारा। यदि मामले में निचले स्तर पर किसी अफसर से बात की गई तो उनका रवैया कैसा होगा ? क्योंकि मेरा समाचार पत्र भी किसी स्टाल पर नहीं बिकता। अधिकारी औऱ नेता-जनप्रतिनिधियों के यहां निशुल्क जाता है।

जब कमिश्नर जैसे ओहदे पर बैठने वाले अधिकारी कथित अभद्रता कर सकते हैं, तो निचले स्तर पर क्या उम्मीद कि किस हद तक जाएं। लिहाजा यदि खबर प्रकाशित होने के बाद पुलिस की तरफ से मामले पर कोई बयान दिया जाएगा तो प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे।

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