
BJP vs BSP: इस बार चुनाव में जहां सभी उम्मीदवारों का फोकस लाईनपार क्षेत्र पर है, वहीं गाजियाबाद विधानसभा के अंदर आने वाले शहर के इलाकों में चर्चा सिर्फ BJP और BSP के उम्मीदवारों की ही हो रही है। मुस्लिम जहां पूरी तरह से शांत है, तो दलित बाहुल्य इलाकों में जरूर कैतली का माहौल दिख रहा है।
पुराने शहर के तमाम हिन्दू बाहुल्य इलाकों में कमोवेश यही स्थिति है। बीजेपी जहां प्रचार के साथ-साथ हर गली-मुहल्ले में चर्चा में है, तो वहीं उसके साथ वैश्य समाज का होने की वजह से परमानंद की चर्चा भी हो रही है। दलित बाहुल्य इलाकों में स्थिति कुछ अलग है। वहां बीजेपी के अलावा यदि ज्यादा चर्चा है तो वो है चंद्रशेखर रावण की पार्टी आजाद समाज पार्टी के चुनाव निशान केतली की। हालाकि दलित बाहुल्य कुछ इलाकों में हाथी के कुछ स्थाई साथी जरूर परमानंद गर्ग की यदा-कदा चर्चा करते दिखाई दे रहे हैं।
मुस्लिम इलाकों में गफलत के हालात
बात शहरी क्षेत्र के मुस्लिम इलाकों की करें तो चाहें कैला भट्टा हो, मुहल्ला कस्सावान हो, हिंडन विहार हो या फिर कुच एक और छोटे-छोटे मुस्लिम बाहुल्य इलाके वहां उम्मीदवार तो सारे गैर भाजपाई जा रहे हैं, मगर मुस्लिम वोटर का रुझान किसकी तरफ है ये कोई नहीं समझ पा रहा। हालाकि साईकिल का अपना दावा है, तो पतंग-केतली और हाथी वाले अलग दावें कर रहे हैं। मगर हकीकत ये है कि मुस्लिम समाज के लोग हाथ जोड़कर अभिवादन तो सभी उम्मीदवारों का कर रहे हैं। मगर वोटों के मामले में किसकी चलेगी इस पर फिलहाल सभी चुप्पी साधे हैं। या ये कहें कि गैर मुस्लिम बिरादरियों का रुख भांपने में जुटे हैं।
ब्राह्मण-वैश्य बाहुल्य इलाकों में सिर्फ BJP-BSP
पुराने शहर के हिंदू बाहुल्य इलाकों की बात करें तो खासकर वो गली-मुहल्ले जहां ब्राह्मण और वैश्य समाज के लोग ज्यादा हैं तो वहां वैश्य समाज के लोगों में जहां परमांनद गर्ग की चर्चा के साथ-साथ बीजेपी का भी नाम लिया जा रहा है। वहीं ब्राह्मण आबादी में अब तक सिर्फ संजीव औऱ BJP ही हैं।
संजीव को अकेले ब्राह्मण होने का लाभ
चाहें बात शहरी इलाके की हो या फिर लाईनपार क्षेत्र की संजीव को इस उप-चुनाव में सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है अकेले ब्राह्मण प्रत्याशी होने का। BJP विरोधी कहे जाने वाले ब्राह्मण समाज के लोग भी खुलकर संजीव को वोट देने की बात करते दिख रहे हैं। इनमें बहुत से लोग कांग्रेस, सपा, बसपा खेमे के हैं। सूत्र तो ये तक बता रहे हैं कि ब्राह्णण समाज के संगठनों के आह्वान पर कई कांग्रेस, सपा और बसपा के नेता भी भीतरखाने संजीव को वोट देने की बात बिरादरी के लोगों से कर रहे हैं। जाहिर है कि ऐसा सिर्फ इसीलिए हो रहा है कि ब्राह्मण समाज से किसी और दल ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है।
इसी वजह से परमानंद की ओर वैश्य समाज
जिस तरह से संजीव को अकेले ब्राह्मण होने का लाभ मिल रहा है। ठीक उसी तरह से परमानंद गर्ग भी अपनी बिरादरी यानि वैश्य समाज से अकेले उम्मीदवार होने का लाभ लेने की कवायद में जुटे हैं। उनकी इस कोशिश में सपा-भाजपा के कुछ नेता भी उनका भीतरखाने साथ दे रहे हैं। मगर, सांसद अतुल गर्ग और उनसे जुड़े वैश्य समाज के लोग गर्ग की इन कोशिशों को पलीता लगा रहे हैं।
उधेड़बुन में दलित समाज
दलित समाज की स्थिति इस बार के चुनाव में बेहद उधेड़बुन वाली है। क्योंकि दलित समाज की वोटों पर दावेदारी करने वालों की भरमार है। इनमें सिंघराज और रवि गौतम तो खुद के दलित होने की वजह से इस वोट बैंक पर अपनी सबसे ज्यादा दावेदारी जता रहे हैं। तो दूसरी तरफ हाथी चुनाव चिन्ह और मायावती की पार्टी के उम्मीदवार होने के कारण परमानंद गर्ग भी खुद को इस वोट बैंक का प्रमुख दावेदार कह रहे हैं। इसके इतर पिछले कुछ चुनावों से दलित समाज में खासी पेंठ बना चुकी चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवार सतपाल चौधरी भी दलित समाज के अपने साथ होने की बात कह रहे हैं।
चंद्रशेखर आजाद की सतपाल चौधरी के पक्ष में अब तक कई सभाएं और रोडशो हो चुके हैं। इनमें दलित समाज के लोगों की भीड़ भी सतपाल के दावें को बल दे रही है। लेकिन दलित समाज के सामने सबसे ज्यादा उधेड़बुन यही है कि वोट दें तो दे किसको ?
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