
Vakilo में रार: जिला जज की अदालत में हुए लाठीचार्ज-तोड़फोड़ और आगजनी की घटना के बाद से चल रहे वकीलों के आंदोलन को 3 हफ्ते तक टालने का ऐलान होने के बाद भले ही कचहरी केंपस में आंदोलन स्थल से तंबू हट गया। मगर, वकीलों और बार एसोसिएशन के टकराव की वजह से काम अभी भी शुरू नहीं हो सका है।
जाहिर है कि काम पर लौटने के बार पदाधिकारियों के फैसले पर वकीलों में सहमति नहीं बन पाई है। गौरतलब है कि बार एसोसिएशन की तरफ से सोमवार को ये ऐलान किया गया था कि महज तीन हफ्तों के लिए आंदोलन को टाला गया है। ताकि कोर्ट में लंबित होने वाले केसों की सुनवाई कराई जा सके। और कामकाज ठप होने की वजह से जेलों में पड़े लोगों को जमानत पर या अन्य माध्यमों से बाहर निकलने का मौका मिल सके। आंदोलन वापसी का फैसला कार्रवाई का आश्वासन मिलने पर लेने की बात कही गई थी।
आंदोलन स्थल हटा, मगर कामकाज नहीं हुआ शुरू
बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के ऐलान के बाद गाजिय़ाबाद कोर्ट परिसर से अनशन स्थल से टेंट तो हट गया, मगर इस फैसले से नाराज वकीलों ने कामकाज शुरू नहीं होने दिया। कोर्ट परिसर में काम के सिलसिले में जाने वाले वकीलों को कोर्ट परिसर के बाहर ही रोक दिया गया। जाहिर है कि वकीलों का एक बड़ा तबका हड़ताल वापस लेने के फैसले के विरोध में है। समाचार लिखे जाने तक आंदोलन वापस लेने के फैसले का विरोध जारी था, जबकि कामकाज ठप।
पदाधिकारियों का दावा : कार्रवाई के आश्वासन पर खत्म की हड़ताल

काम पर वापस लौटने का ऐलान करने वाले बार के पदाधिकारियों की मानें तो हड़ताल सिर्फ तीन हफ्ते के लिए टाली गई है। उन्हें आश्वासन मिला है कि तीन हफ्तों के भीतर उऩकी मांगों को पूरा किया जाएगा और जो मांगे उनके द्वारा की गई हैं उन पर एक्शन होगा। इसी आश्वासन के बाद न सिर्फ कामकाज पर लौटे हैं, बल्कि हाईकोर्ट के घेराव का कार्यक्रम भी स्थगित किया गया है।
मांगे नहीं मानी, तो 3 हफ्ते बाद फिर आंदोलन

बार के पदाधिकारियों का कहना है कि यदि उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया जाता है, तो एक बार फिर से न सिर्फ कामकाज ठप किया जाएगा। बल्कि पहले से ज्यादा जोरदार तरीके से आंदोलन छेड़ा जाएगा। गौरतलब है कि वकील मुख्य रूप से गाजियाबाद के जिला जज को हटाने औऱ उनके खिलाफ एक्शन लेने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा वकीलों की मांग है कि उन पर लाठीचार्ज करने और कराने में जो भी पुलिसकर्मी या अफसर दोषी हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो। वकीलों की एक मांग ये भी है कि उनके खिलाफ जो मुकदमें लाठीचार्ज की घटना वाले दिन या आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए हैं, वो भी वापस लिए जाएं।
सवाल : क्या मानी जाएंगी Vakilo की सारी मांग ?
हालाकि वकीलों के हड़ताल वापस लेने के फैसले पर ही रार शुरू हो गई है और कामकाज अभी तक शुरू नहीं हो सका है। लेकिन हड़ताल वापसी का फैसला लेने वाले पदाधिकारियों का साफ तौर पर कहना है कि उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वो दोबारा तीन हफ्ते बाद न सिर्फ कामकाज ठप कर देंगे। बल्कि पहले से ज्यादा बड़ा आंदोलन शुरू करेंगे।
लेकिन सवाल बड़ा है कि क्या वकीलों की जिला जज, दोषी बताये जा रहे पुलिस कर्मियों-अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होगी ? सवाल ये भी कि क्या पुलिसकर्मियों और ज्यूडिशरी के अफसर-कर्मियों के तबादले करके ही मामले को शांत किया जाएगा। गौरतलब है कि तबादले की प्रक्रिया कोई एक्शन नहीं बल्कि सरकारी महकमें में ये सामान्य प्रक्रिया है। यदि केवल तबादले होते हैं तो क्या वकील संतुष्ट होंगे ये सवाल भी बड़ा है, जिसका जवाब तीन हफ्ते बाद पता चलेगा।
मुकदमें खत्म होंगे, तबादले भी
गाजियाबाद के कई वरिष्ठ अधिवक्ता भी ये मान रहे हैं कि शासन स्तर पर ये तो संभव है कि वकीलों पर दर्ज मुकदमें वापस ले लिए जाएं। ये भी हो सकता है कि पुलिसकर्मियों और ज्यूडिशरी में भी अफसरों के तबादले कर दिए जाए। मगर, लगता नहीं कि कोई ठोस एक्शन किसी भी न्यायिक या पुलिस अफसर पर लिया जाएगा। सीनियर वकीलों का कहना है कि केवल मुकदमें वापस होने और तबादले करने पर वकील संतुष्ट होंगे या नहीं ये भी तीन हफ्ते बाद ही साफ हो पाएगा। जाहिर है कि इस विवाद का पटाक्षेप होगा या नहीं ये तीन हफ्ते बाद ही साफ हो पाएगा।
हड़ताल खत्म हो, तो राहत जरूर मिलेगी
पिछले कई हफ्ते से चल रही इस हड़ताल यदि खत्म होती तो, इसमें शक नहीं कि सभी को राहत मिलती। चाहें वकील हों, वादकारी हों या फिर पुलिस और ज्यूडिशरी। जाहिर है कि हड़ताल की वजह से न सिर्फ पहले से लंबित मुकदमों के अंबार से घिरी ज्यूडिशरी पर काम का बोझ बढ़ रहा है। वहीं जेलों में बंद होने वाले लोगों की तादात भी लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही केवल कचहरी के कामकाज से जीविका चलाने वालों के सामने भी परिवार की जीविका चलाने का संकट बना है।
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