हाल-ए-बसपा: हैसियत का कूड़ा करो, ईनाम पाओ, जिलाध्यक्ष को 3 जिलों की कमान

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हाल-ए-BSP: कांग्रेस-बीजेपी के अलावा कभी ऐसा नहीं हुआ जब किसी राजनैतिक पार्टी ने गाजियाबाद में क्लीन स्विप किया हो। मगर जिले की पांच में से चार विधानसभा सीटों पर जीत का परचम लहराने वाली यूपी की सबसे पहली दलित राजनीति वाली BSP का आज इस जिले में हाल ये है कि वो जमानत तक बचा पाने में नाकाम साबित हो रही है। बावजूद इसके देखिए कि जिम्मेदार पदाधिकारियों पर कार्यवाही छोड़िए उल्टा उन्हें पुरस्कृत किया जा रहा है। वो कैसे पढ़ें इस खबर में।

जिलाध्यक्ष को मिली 3 जिलों की जिम्मेदारी

गाजियाबाद विधानसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी परमानंद गर्ग के प्रदर्शन का सभी को पता है। वो 11 हजार वोट भी नहीं पा सके। पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी और दलित वोटों में कमजोर होती पकड़ इसकी वजह रही। मगर ये अभी तक का बसपा का किसी चुनाव का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन कहा जा सकता है। जाहिर है कि परमानंद इस पार्टी और इससे जुड़े नेताओं के लिए नये थे।

मगर लगातार चुनाव में गिरते आ रहे ग्राफ के बावजूद नेता-कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन जिस तरह से निऱाशाजनक दिखाई दे रहा है, उम्मीद थी कि जिम्मेदार लोगों पर आलाकमान बड़ा फैसला लेकर उन्हें दंडित करने का काम करेगा। मगर देखिए कि इस चुनाव के जिले के सर्वेसर्वा को नतीजों के तीन दिन बाद ही ताजपोशी मिल गई। उन्हें गाजियाबाद के साथ-साथ गौतमबुद्धनगर समेत तीन जिलों का कॉर्डिनेटर नियुक्त किया गया है।

15 जनवरी के टारगेट पर चर्चाएं

BSP के सूत्रों की मानें तो 15 जनवरी को बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का जन्मदिन है। इस जन्मदिन पर पार्टी फंड में चंदा जमा करने का अभियान चलता है। चर्चा है कि इस बार जिले को डेढ़ करोड़ रुपये का टारगेट मिला है। नये जिलाध्यक्ष की नियुक्ति से पहले ये टारगेट पार्टी के कई दावेदारों के सामने रखा गया मगर, नये जिलाध्यक्ष ने इस टारगेट को पूरा करने का भरोसा दिया और उनकी ताजपोशी हो गई। हालाकि इस चर्चा पर हमेशा की ही तरह इस मामले पर कोई भी पार्टी नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

अपने गढ़ों में हार पर भी चुप्पी क्यों ?

गौरतलब है कि इस चुनाव में बहुजन समाज उन इलाकों में भी तीसरे और चौथे पायदान पर रही है जिन्हें दलित समाज का गढ़ कहा जाता है। बावजूद इसके पार्टी में विधानसभा से जिला स्तर तक भी इस बारे में कोई मंथन नहीं चल रहा। आलाकमान के स्तर पर हुए फैसले से तो ये साफ हो ही गया है कि उन्होंने इस उप-चुनाव के नतीजों और उससे पहले हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में गिर रहे वोट प्रतिशत को कितना गंभीरता से लिया है।

हालात से पार्टी की जड़ों में दर्द

इन हालातों से भले ही कोई चिंतित न हो, मगर ये हकीकत है कि बहुजन समाज पार्टी को शुरूआत से सत्ता तक पहुंचाने में दिन-रात एक करने वाले वो नेता और कार्यकर्ता जो आज तक इसी से जुड़े हैं। जिनके लिए बहुजन समाज पार्टी एक आंदोलन है। वे काफी सदमे में हैं। इस हालत पर हालाकि वे ऑन रिकॉर्ड तो कुछ नहीं कह रहे मगर उनका दर्द जरूर उनके भावों से छलक रहा है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी के सोशल मीडिया पर बने ग्रुपों पर गाजियाबाद विधानसभा के उप-चुनाव के नतीजे आने के बाद जमकर जंग छिड़ी। जो आज भी जारी है।

सूत्रों का दावा है कि पार्टी के वर्तमान पदाधिकारियों और उनकी चुनावी रणनीतियों पर जमकर सवाल उठाए जा रहे हैं। इतना ही नहीं कई कार्यकर्ताओं औऱ नेताओं के बीच आपत्तिजनक टिप्पणियां तक हुई हैं। जिनकी शिकायतें तक आलाकमान को की गई हैं।

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