कुछ तो रखो गाजियाबादी मिट्टी का मान: अफसरशाही के आगे क्यों बेबस ‘बुलंद’ गाजियाबादी ?

Ghaziabadi

Buland Ghaziabadi: ये शहर दुर्गा भाभी का है। ये जिला कुलदीप तलवार जैसे पत्रकारों का है। ये जिला कवि कृष्ण मित्र, कुंवर बेचैन जैसे कलमकारों का है। ये जिला तेजा सिंह, प्यारे लाल शर्मा जैसे जुझारू जनप्रतिनिधियों का है। इस जमीन ने सतीश शर्मा, विजेंद्र यादव, सुनीता दयाल जैसे जुझारू छात्र राजनीति से उभरे नेता दिए हैं। इस जमीन ने ही बहुत सारे ऐसे नामचीन वकील भी दिए जिनकी एक गुर्राहट भर से ज्यूडिशरी से लेकर अफसरशाही तक हिल जाती थी।

मगर, आज जो हालात हैं वो ये सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि इस बुलंद जिले की मिट्टी से पनपे गाजियाबादियों को आखिर क्या हो गया है। जो बाहर से यहां नौकरी करने आए लोग इस बुलंद जिले के लोगों पर इस कदर हावी होते जा रहे हैं ? आखिर क्या है इसकी वजह ? इस वजह को तलाशना होगा। वरना हालात बद से और ज्यादा बदतर होने तय हैं।

Ghaziabadiyo पर हावी है अफसरशाही

मैं किसी अधिकारी विशेष की बात नहीं कर रहा। मैं किसी खास राजनीति से जुड़े शख्स की चर्चा नहीं कर रहा। मैं बात कर रहा हूं हर उस Ghaziabadi की जो किसी भी पेशे से जुड़ा हो। चाहें व्यापारी वर्ग हो, चाहें अधिवक्ता वर्ग हों, चाहें सत्ता या विपक्ष से जुड़े राजनीतिज्ञ हों। जनप्रतिनिधि हों। आज कुछ को छोड़ दें तो हर कोई परेशान है अफसरशाही के अडियल रवैये से। स्वास्थ्य विभाग की बात कर लें, बिजली विभाग की, पुलिस विभाग की, नगर निगम की, जीडीए या आवास-विकास की या फिर किसी और सरकारी अमले की।

कमोवेश आज सभी जगह हालात ये हैं कि सामान्य व्यक्ति के रूप में यदि आप मिलने जाते हैं तो अधिकांश अफसर आपकी सुनने को तैयार ही नहीं हैं। अबसे करीब एक दशक पहले तक हालात ये थे कि इक्का-दुक्का अफसर हर विभाग में छोटा हो या बड़ा मिल जाता था जो अडियल होता था। जिद्दी होता था या फिर अपनी पहुंच और अहंकार में चूर होकर सिर्फ चुनिंदा लोगों को तरजीह देता था, मगर बाकियों को एक लाठी हांक देता था। लेकिन आज हालात कमोवेश ये हैं कि अधिकांश अफसरों की हालत यही है।

अफसरशाही से टकराव के कुछ चुनिंदा मामले

  1. राजनेताओं के विवाद
  • बीजेपी के विधायक नंदकिशोर गूर्जर का पुलिस कमिश्नर से विवाद
  • महापौर सुनीता दयाल का नगर आयुक्त से विवाद
  • यति नरसिंघानंद सरस्वती को हिरासत में लेने पर हिंदू संगठनों से विवाद

 2. व्यापारियों से विवाद

  • टैक्स बढ़ोतरी के मामले पर नगर आयुक्त के फैसले पर टकराव
  • शहर में कई जगह यातायात और अन्य मुद्दों पर अफसरों से विवाद
  • जीएसटी के मामले में व्यापारी के निर्वस्त्र होने को मजबूर होने का मामला

 3. वकीलों का विवाद

  • जिला जज से अधिवक्ताओं का चल रहा विवाद
  • पुलिस अफसरों के लाठीचार्ज को लेकर पुलिस अफसरों से विवाद

 4. मीडिया वालों के विवाद

  • पुलिस कमिश्नर का इमरान खान सहित तीन पत्रकारों को जेल भेजने का विवाद
  • इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार शक्ति सिंह और पुलिस कमिश्नर का विवाद
  • इलेक्ट्रानिक मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुज चौधरी की सुरक्षा कम करने का विवाद
  • मुफ्त में अखबार बंटवाने वाले पत्रकारों को दलाल कहने वाले पुलिस कमिश्नर के बयान वाला विवाद

कुछ विभीषण बने हैं अपने ही

लंकापति रावण बहुत विद्वान था, बहुत पराक्रमी भी था। प्रकांड पंडित भी था और सर्वज्ञाता भी था, मगर उसका विनाश एक विभीषण ने कर डाला था। आज इस जिले में एक नहीं बल्कि कई विभीषण हैं जो अफसरशाही के लिए विभीषण की भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे लोग ही हैं जो Buland Ghaziabadiyo पर अफसरशाही या सरकारी मशीनरी को हावी करने का काम कर रहे हैं।

विभीषण पहले भी थे, आज भी हैं

हालाकि ऐसा नहीं कि ऐसे लोग हाल-फिलहाल ही पैदा हुए हैं। बल्कि इस तरह के लोग राजनीति, वकालत, व्यापारी वर्ग, पत्रकार बिरादरी और राजनीति में पहले भी थे और आज भी हैं। फर्क सिर्फ इतना आया है कि अब इस तरह के लोगों की संख्या में इजाफा हो गया है। जिसका नतीजा ये है कि सरकारी मशीनरी स्थानीयों पर भारी पड़ने लगी है। या ये कहें कि सरकारी मशीनरी मनमानी कर रही है और बुलंद गाजियाबादी सिर्फ और सिर्फ तमासबीन बनने को मजबूर हैं।

विभीषणों सोचो, अफसर आज है, कल नहीं रहेगा

अफसरों की जी-हुजुरी करके अपने छोटे-मोटे काम निकालने वाले सभी विभीषणों से एक ही सवाल है। कि अफसर कल नहीं रहेंगे। तब इन्हीं अपनों के बीच रहकर जीवन बिताना है। तब क्या होगा जब ये तबादला होने पर यहां से चले जाएंगे। मैं बात कर रहा हूं उन सारे विभीषणों की । अब वो विभीषण चाहें राजीनीति के हों, वकालत के पेशे वाले, व्यापारी वर्ग वाले या फिर जनप्रतिनिधियों औऱ मीडिया वाले हों।

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