एक कंप्लीट पुलिसमैन का तबादला : आसान नहीं है IPS दिनेश कुमार पी. बनना

Policeman

Complete Policeman: 26 साल की पत्रकारिता के अनुभव में सूबे के वर्तमान डीजीपी प्रशांत कुमार की गाजियाबाद में कप्तानी वाली पारी देखी। उससे पहले नामचीन आईपीएस वी.के.गुप्ता को भी देखा। इनके बाद तो न जाने कितने ही आईपीएस और पीपीएस अफसरों से रू-ब-रू होना पड़ा। लेकिन ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि आईपीएस जैसे बड़े ओहदे पर वो भी गाजियाबाद जैसे जिले में तैनाती के दौरान किसी अफसर का बेहद शांत, सोम्य और मृदुभाषी होना आसान नहीं है।

सड़क से लेकर ऑफिस तक में एक कंप्लीट पुलिसमेन के रूप में दो साल तक काम करना और निर्विवादित होकर जाना आसान नहीं है। इसीलिए ये कह भी रहा हूं और लिख भी रहा हूं कि गाजियाबाद जैसे बेहद तनावपूर्ण और वर्कलोड वाले जिले में दो साल तक दिनेश कुमार पी. बनकर काम करना और रूखस होना कोई मामूली बात नहीं है।

महज 2 मुलाकात ने बता दिया स्वभाव

हालाकि दिनेश कुमार पी.के दो साल के कार्यकाल में मेरी सिर्फ दो बार ही उनसे भेंट हुई है। लेकिन उन दो मुलाकातों ने ही ये एहसास करा दिया कि उनकी वर्किंग कैसी है। पहली बार मुलाकात हुई थी अपने समाचार पत्र के कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र देने के वक्त। ध्यान है कि कार्ड पर उनका नाम और पद लिखते में मैं एक छोटी लेकिन ऑफिशली बड़ी चूक कर गया था।

उनके नाम के नीचे पद लिखते वक्त ADD. सीपी लिखने की बजाय जल्दबाजी में सिर्फ acp लिख दिया। आज भी ध्यान है कि सीनियर आईपीएस ने बड़े ही सोम्य अंदाज में कहा कि अरे भाई आपने तो मेरी रेंक ही कम कर दी। उनके उस शालीन स्वभाव को आज तक याद रखे हूं। उन्हीं दिनों एक और छोटी सी मुलाकात हुई थी किसी केस के सिलसिले में। उनकी हिन्दी पर पकड़ को देखकर कोई कयास ही नहीं लगा सकता कि वे तमिलनाडु से हैं।

यति प्रकरण में सड़क पर देखी वर्किंग

गाजियाबाद पुलिस के लिए बड़ा सिरदर्द बना यति नरसिन्हानंद प्रकरण ऐसा था जिसमें आईपीएस दिनेश कुमार पी. को सड़क पर देखा। संतों की महापंचायत के दौरान जिस तरह से सबसे आगे रहकर दिनेश कुमार पी. ने उस मामले को संभाला उससे बखूबी अंदाजा हो गया कि वे केवल ऑफिस की वर्किंग में ही नहीं बल्कि फिल्ड में भी कंप्लीट पुलिसमेन हैं। कई मर्तबा अहम मौकों पर फ्लेग मार्च औऱ शांति व्यवस्था के लिए निकाले गए पुलिस मार्च में भी उनकी कार्यशैली बहुतेरे पुलिस अफसरों के मुकाबले बेहतर दिखाई दी।

जनसुनवाई में जीता सबका दिल

हर दिन सुबह से लेकर कई घंटे तक जिले के दूर-दराज के इलाकों से अपनी फरियाद लेकर आने वाले लोगों से बड़े ही शालीन तरीके से उनकी समस्याएं न सिर्फ सुनना बल्कि जरूरत के लिहाज से उनका वरीयता के आधार पर निस्तारण कराने का तरीका दिनेश कुमार पी. का लोगों को बेहद माफिक आया।

अधीनस्थों के साथ शालीन व्यवहार

अपने अधीनस्थ स्टाफ के साथ दिनेश कुमार पी. की शालीनता की कहानी कई मर्तबा उनके साथ काम करने वाले पुलिसकर्मियों से ही सुनने को मिली हैं। चाहें उनके आवास पर तैनात पुलिसकर्मी हों या फिर ऑफिस में दो साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा नहीं जिसने सीनियर आईपीएस के व्यवहार को लेकर किसी तरह की शिकायत भर की हो। जाहिर है कि इसीलिए दो साल के कार्यकाल में वर्कलोड में भी निर्विवादित रहकर जाना आसान नहीं। इसीलिए ये कहना ही होगा कि आसान नहीं है दिनेश कुमार पी. बनना।

ये है दिनेश कुमार पी. का जॉब रिकॉर्ड

दिनेश कुमार पी.का जन्म 1 मार्च 1986 को तमिलनाडु के सेलम जिले में हुआ उन्होंने कृषि विज्ञान में स्नातक (बीएससी एग्रीकल्चर) की पढ़ाई की. 2009 में सिविल सेवा परीक्षा पास कर भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में शामिल हुए. आईपीएस दिनेश कुमार पी ने सहारनपुर, शामली, गोरखपुर, झांसी, पीलीभीत, हमीरपुर, जौनपुर, और कन्नौज जैसे जिलों में पुलिस कप्तान के रूप में काम किया है.

पारिवारिक पृष्ठभूमि

आईपीएस दिनेश कुमार प्रभु ने तमिलनाडु राज्य के सेलम में पी. प्रभु के परिवार में 1 मार्च 1986 को जन्म लिया था। आईपीएस दिनेश कुमार प्रभु ने इण्टरमीडीएट के बाद अग्रीकल्चर से बी.एस.सी की थी। दिनेश कुमार पी सिविल सर्विसेज की परीक्षा को पासआउट कर साल 2009 बैच के आईपीएस अफसर बन गये थे। आईपीएस दिनेश कुमार के शुरूआती पोस्टिंग अलीगढ़ से हुई थी।

सबसे छोटा कार्यकाल

आईपीएस दिनेश कुमार प्रभु का सबसे छोटा कार्यकाल जौनपुर के एसपी के पद पर रहा है, आईपीएस दिनेश कुमार प्रभु का जौनपुर से 6 दिन में ही तबादला हो गया था और आईपीएस दिनेश कुमार प्रभु का सबसे लंबा कार्यकाल सहारनपुर के एसएसपी के पद पर रहा है। आईपीएस दिनेश कुमार प्रभु ने लगभग 20 महीनों तक सहारनपुर में एसएसपी के पद रहते हुए गुड़ पुलिसिंग की थी।

ये भी पढ़े:

 

ऐसी और खबरों के लिए हमारे सोशल मीडिया फॉलो करे: Twitter Facebook 

Scroll to Top