
RTE Admission Notice: एक मशहूर शायर की पंक्तियां याद आ रही हैं। क्या खूब लिखा गया था कि उम्र गुजरी कबीलों को लूटते जिसकी, आज वो रहबर दिखाई देता है। शेर की नहीं होती देखी कहीं कुर्बानी, सबको कमजोर का ही सर दिखाई देता है। खबर पढ़ रहा था कि अपनी जमीन के विवाद में एक मां-बेटी गैर जनपद के डीएम से बार-बार गुहार लगाकर थक गई तो भूल बैठी कि आईएएस के सामने है।
गुहार लगाते-लगाते फस्ट्रेट हो गई मां-बेटी ने थोड़ी तेज आवाज में अपना दर्द डीएम साहब के सामने क्या रख दिया कि साहब ने मां-बेटी को जेल भिजवा दिया। लेकिन देखिए गाजियाबाद में सरकारी अफसरशाही की बेबसी का हाल कि केंद्र सरकार की गरीब बच्चों को लेकर शिक्षा के अधिकार के तहत चलाई जा रही RTE योजना को लागू कराने में नाकाम हैं।
साल बीतने को है, मगर, RTE के तहत दाखिला नहीं करने वाले 30 स्कूलों के दबंग संचालकों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। ये हाल तब है कि जब जिला प्रशासन की ओर से उन्हें मान्यता रद्द करने की चेतावनी तक दे दी। साल खत्म होने को है, मगर इन रसूखदार स्कूल संचालकों ने न तो RTE के तहत चुने गए बच्चों को दाखिले दिए और ना ही प्रशासन की चेतावनी को ही गंभीरता से लिया। इसी का नतीजा है कि बीते साल RTE दाखिले के लिए लिस्टेड 15042 बच्चों में से बामुश्किल केवल करीब चार हजार बच्चों को ही सरकारी योजना का लाभ मिल सका।
ये है इस साल RTE का लेखा-जोखा
इस साल जिला प्रशासन ने RTE के लिए कुल 552 निजी स्कूल चिंहित किए थे। इनमें 15,042 बच्चों को प्रवेश देने के आदेश इन स्कूलों को दिए गए थे। साल बीतने को है, मगर अभी तक मात्र करीब चार हजार बच्चों का ही प्रवेश इन निजी स्कूलों में हो सका। ये आंकड़ा ये बताने को काफी है कि सरकारी मशीनरी के आदेश इन रसूखदार निजी स्कूलों के संचालकों के लिए कोई मायने नहीं रखते।
30 स्कूलों को नोटिस, कोई असर नहीं

गौरतलब है कि निशुल्क एवं बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 2009 की धारा (1) (ग) के अंतर्गत अलाभित समूह एवं दुर्बल वर्ग के बच्चों को कक्षा एक में दाखिले के लिए चयनित किया गया था। इनमें से हजारों बच्चों को एडमिशन नहीं दिया गया। बेसिक शिक्षा विभाग के लगातार पत्रचार के बावजूद भी जब एडमिशन नहीं के गए तो बेसिक शिक्षा अधिकारी ने एक अंतिम चेतावनी नोटिस जारी किया। ये नोटिस शहर के 30 नामचीन स्कूलों को भेजा गया।
पत्र में बेसिक शिक्षा अधिकारी ने चेतावनी दी कि 25 नवंबर तक यदि शत-प्रतिशत बच्चों को दाखिला नहीं दिया गया तो मान्यता खत्म करने के लिए शासन से पत्राचार किया जाएगा। बावजूद इसके आलम ये है कि करीब 11 हजार बच्चे वर्ष 2024-25 के शैक्षणिक सत्र में शामिल ही नहीं किए गए। केंद्र और प्रदेश सरकार की योजना की ये हालत सिर्फ गाजियाबाद में है। सोचिए कि सूबे के बाकी शहरों का हाल क्या होगा ?
रसूखदारों के स्कूल, क्या करे अफसरशाही ?
जिन 30 स्कूलों को नोटिस भेजा गया था। उनमें कई स्कूल बीजेपी के दिग्गज नेताओं के हैं तो कुछ कांग्रेस और सपा से जुड़े लोगों के। ऐसे में आप बखूबी दाजा लगा सकते हैं कि अफसरशाही की हालत क्या है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर कब तक सरकारी योजनाओं को सत्ता से सटे बैठे लोग ही पलीता लगाते रहेंगे और गरीबों को उनके पढ़ाई के अधिकार से वंचित करते रहेंगे ?
पेरेंट्स एसोसिएशन कर रही संघर्ष

इस हालत पर पेरेंट्स एसोसिएशन के विवेक त्यागी कहते हैं कि इस सत्र में जो हालत दिख रही है। पहले इससे भी ज्यादा बुरा हाल था। गली-मुहल्लों में स्कूल तो खुले थे। मगर अधिकांश में आरटीई के तहत दाखिलों का प्रावधान ही नहीं था। बीत रहे सत्र में मात्र 552 स्कूल ही ऐसे थे जिनमें आरटीई के तहत दाखिलों का प्रावधान प्रशासन की तरफ से किया गया था।
लगातार संघर्, के बाद इस बार नये सत्र में न स्कूलों की संख्या बढ़ाकर 552 से 1192 हुई है। बीत रहे सत्र में आरटीई के तहत जहां 15042 सीटें गरीब बच्चों के लिए निर्धारित हुई थीं। नये सत्र में उनकी संख्या बढ़कर 19042 हो गई है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि बीत रहे सत्र में एडमिशन 150412 बच्चों को एडमिशन मिलने चाहिए थे। मगर हुए मात्र करीब चार हजार। शेष बच्चों को आज तक रसूखदार स्कूल संचालकों ने शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा। विवेक त्यागी का कहना है कि हमारी लड़ाई जारी है। देर से ही सही, मगर गरीब बच्चों को उनका शिक्षा का अधिकार शत-प्रतिशत दिलाने तक संघर्ष जारी रहेगा।

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