Fake Journalist: जनर्लिस्ट बनने के लिए जरूरी नहीं मासकॉम डिग्री, गांधीजी दो और बन जाओ पत्रकार

Fake Journalist

Fake Journalist: यदि आपको मीडियाकर्मी बनना है, तो न किसी डिग्री पर लाखों खर्च करने की जरूरत है। न किसी मीडिया संस्थान में वरिष्ठों के अंडर में ट्रेनिंग लेने की आवश्यकता है। उसके लिए केवल जरूरी है गांधीजी छपे नोटों की। नोट लेकर जाओ और अपना एक शानदार सा फोटो खिंचवाओ और बन जाओ मिनटों में पत्रकार यानि जनर्लिस्ट। जी हां! आपको मेरी बात कुछ अटपटी जरूर लग रही होगी। मगर ये एकदम सच और हकीकत है।

दिल्ली-NCR में इस तरह का गोरखधंधा करने वाली दस-20 नहीं बल्कि सैकड़ों की तादात में Fake Journalist बनाने की दुकानें खुली हुई हैं। जिनका न खबरों से कोई सरोकार है और ना ही पत्रकारिता से। बल्कि वे एक मीडिया प्लेटफार्म रजिस्टर्ड कराकर सिर्फ और सिर्फ Fake Journalist बनाने का धंधा चला रहे हैं। इनमें डिजीटल रिपोर्टर, प्रिंट मीडिया रिपोर्टर और न्यूज चैनल रिपोर्टर्स बनने के अलग-अलग दाम फिक्स हैं। हालांकि ये Fake Journalist का ठप्पा यानि कि आईडी कार्ड देने की एवज में ग्राहक की हैसियत देखकर ही पैसे बताते हैं। लेकिन आमतौर पर सबके दाम फिक्स हैं।

शैक्षणिक योग्यता की नहीं है जरूरत

इन दुकानों पर जाकर Fake Journalist बनने का लाइसेंस प्राप्त करने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि यहां न तो आपको मास्कोम की डिग्री चाहिए न जरूरत है हाई स्कूल-इंटर या ग्रेजुएट होने की किसी योग्यता की। सिर्फ आधार कार्ड लेकर जाइए और जेब में लेकर जाओ 5 से 10 हजार के कड़कदार नोट। बस चुटकियों में बन जाओगे प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक या डिजीटल Fake Journalist

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एक साल के लिए वैध होता है आईडी कार्ड

ये Fake Journalist करने वाले असली नकली में फर्क न पता चले इसके लिए असली मीडिया घरानों की तरह नियमों को पूरा फॉलो कराते हैं। आई कार्ड पर वैधता की तिथि एक साल की ही होती है। बाकायदा रजिस्टर में आपकी एक फोटो भी आपके आधार कार्ड की फोटो कॉपी के साथ सुरक्षित रखी जाती है। आपका निजी फोन नंबर ही नहीं बल्कि एक अल्टरनेटिव नंबर भी नोट किया जाता है।

स्टीकर-आईडी के अलग हैं दाम

यदि आपको आईडी कार्ड के अलावा अपने वाहन पर लगाने के लिए प्रेस वाला स्टीकर भी चाहिए और शहर में रौब झाड़ने के लिए एक माइक आईडी भी तो उसका एक्स्ट्रा चार्ज है। बाइक के स्टीकर के पांच सौ से एक हजार रूपये प्रति स्टीकर तो चार पहिया वाहन पर लगने वाले स्टीकर के एक हजार रुपये प्रति स्टीकर लिए जाते हैं। आईडी कार्ड के साथ आपको गले में लटकाने वाले पट्टी मुफ्त दी जाती है। बस गांधी जी का भुगतान करो और बाइक, कार पर स्टीकर चिपकाओ। गले में पट्टी वाला आईडी कार्ड लटकाओ और हाथ में माइक आईडी लेकर बन जाओ Fake Journalist

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चौराहे-तिराहे से सरकारी दफ्तरों में कर रहे दलाली

इसी तरह के सैकड़ों Fake Journalist हैं जिन्हें हिन्दी भी ठीक से लिखनी और बोलनी नहीं आती। उनकी शैक्षिक योग्यता भी हाई स्कूल या उससे भी कम है। मगर Fake Journalist आईडी कार्ड और माइक आईडी लेकर मीडियाकर्मी बने गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर ही नहीं बल्कि दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में सैकड़ों की तादात में घूम रहे हैं। कर्मचारी-अफसरों को इनकेFake Journalist होने की जानकारी नहीं है। जिसके चलते कई बार सरकारी कर्मचारी-अफसर और ठेकेदार इनकी अवैध वसूली के शिकार भी बन जाते हैं।

प्रशासन से कई बार की गई जांच की मांग

ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी मीडिया से जुड़े लोगों को नहीं है। बल्कि कई बार मीडिया संगठनों और मीडिया के लोगों की तरफ से इस बाबत उच्चाधिकारियों से भी लिखित और मौखिक शिकायतें की गई हैं। जांच कराने और Fake Journalists के खिलाफ ठोस कार्रवाई की मांग भी की जाती रही है। लेकिन अफसर भी इस पर गंभीरता से गौर नहीं करते।

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सरकारी सोशल मीडिया ग्रुप में Fake Journalists की भरमार

चाहें पुलिस हो, प्रशासनिक विभाग हों या फिर अलग-अलग राजनैतिक और व्यापारी संगठनों के सोशल मीडिया ग्रुप इनमें भी इस तरह के Fake Journalists का बोलबाला है। पुलिस के जानकारी देने वाले सोशल मीडिया अकाउंट, जीडीए-नगर निगम के सोशल मीडिया अकाउंट में इनकी भरमार है। यहां तक कि जिले का सूचना विभाग भी ऐसे न जाने कितने ही Fake Journalists को हर वक्त सरकारी आयोजनों की जानकारियां मुहैया कराता आ रहा है।

क्या बड़ी अनहोनी होने पर जागेगा प्रशासन?

गौरतलब है कि दिल्ली से सटा होने के साथ-साथ कई और कारणों से गाजियाबाद-गौतमबुद्धनगर यूपी के चुनिंदा महत्वपूर्ण शहरों में गिने जाते हैं। यहां उच्चाधिकारियों, केंद्र प्रदेश के नेता-मंत्रियों सहित वीआईपी के कार्यक्रम भी लगते रहते हैं। इन सरकारी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिये उन कार्यक्रमों की पूर्व सूचनाएं भी इन Fake Journalists तक पहुंचती रहती हैं। यदि किसी दिन Fake Journalists के जरिये कार्यक्रमों की सूचना असामाजिक तत्वों तक पहुंचने से कोई अनहोनी हो जाएगी, तो शायद प्रशासनिक अमला नींद से जागेगा। इन गंभीर मामले की अनदेखी तो फिलहाल यही बता रही है।

अवैध वसूली के मामले आते रहे हैं सामने

इस तरह के Fake Journalists के खिलाफ लोगों से अवैध वसूली करने या फिर उन्हें मीडिया का रौब दिखाकर अवैध वसूली करने जैसी शिकायतें भी यदा-कदा सामने आती रहती हैं। लेकिन इन लोगों की कुछ सरकारी अफसर-कर्मचारियों और चंद मीडिया वालों से अच्छी उठ-बैठ के चलते इनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हो पाता। जबकि कई मामलों में ऐसे Fake Journalists के खिलाफ मुकदमें तक दर्ज हो चुके हैं। ऐसे कई Fake Journalists तो पुलिस के रिकॉर्ड में घोषित अपराधी भी हैं, मगर अपनी सरकारी मशीनरी में उठबैठ के चलते पत्रकारिता का ठप्पा लगाकर अवैध उगाही और वसूली की दुकानें चला रहे हैं।

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