
Society Election Result: गाजियाबाद से लेकर गौतमबुद्धनगर, गुरुग्राम और फरीदाबाद तक आज Delhi-Ncr में सोसायटीज का जाल फैला है। इन सोसायटीज में डवलपमेंट को लेकर सबसे ज्यादा चिल्ल-पौं होती है। इस चिल्ल-पौं की वजह भले ही आम आदमी नहीं समझ पाता, मगर इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है कि सोसायटीज बॉयलॉज के हिसाब से इनके विकास और मैनटिनेंस को मिलने वाला पैसा।
इसी करोड़ों की रकम को लेकर पिछले कई साल से गाजियाबाद में आवास-विकास परिषद की सबसे महंगी और सबसे उन्नत सोसायटी गंगा-यमुना-हिंडन में विवाद चल रहा था। ये विवाद इतना ज्यादा बढ़ा हुआ था कि अरबों रुपये वाली सरकारी योजना में बने हजारों फ्लेट्स सरकारी छूटों के बावजूद आज तक खाली हैं। जिन लोगों को फ्लैट्स मिले, उनमें से भी काफी लोगों ने ये फ्लेट्स सरेंडर करके अपनी रकम वापस ले ली।
इस सरकारी सोसायटी की आरडब्लूए बनी, उसे लेकर भी कई साल से विवाद चलता रहा। आरोप-प्रत्यारोपों के दौर चले। आरडब्लूए पर कई साल बीजेपी के नेता और लोनी विधायक नंदकिशोर के सहपाठी यतेंद्र नागर का कब्जा रहा। मगर, आखिरकार जबरदस्त विरोध के चलते वर्तमान गाजियाबाद विधायक संजीव शर्मा के राइट हेंड पप्पू पहलवान के संरक्षण में सोसायटी में चुनाव हो गया।
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चुनाव का नतीजा भी आ गया। यतेंद्र नागर सबसे आखिरी नंबर पर भी पहुंच गए। मगर, देखिए कि भाजपाईयों की लड़ाई का फायदा तीसरा उठा गया और पप्पू पहलवान के समर्थन से चुनाव लड़ने वाले बीजेपी के सपोर्टर भी कई उम्मीदवारों से पिछड़कर सोसायटी के अध्यक्ष पद पर काबिज नहीं हो सके।
ऐसे में उस कहावत को याद करना बेमानी नहीं होगा कि बिल्लियों की लड़ाई में बंदर का फायदा। यही हुआ गंगा-यमुना-हिंडन Society Election में। कुल पड़े वोटों में जहां कई साल से अध्यक्ष रहे यतेंद्र नागर को मात्र 38 वोट मिले, तो पप्पू पहलवान के समर्थन से चुनाव लड़ रहे अचल कुमार यानि अचल मिश्रा को 186 वोट के साथ तीसरे नंबर पर रहे। जबकि अध्यक्ष पद पर 225 वोट लेकर अवनीश नाथ त्रिपाठी काबिज हो गए।
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Society Election में विरोध के बावजूद वेलट से हुआ चुनाव

हालांकि बीजेपी नेता और लोनी विधायक नंदकिशोर के सहपाठी रहे यतेंद्र नागर ने इस Society Election को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन से लेकर उच्च न्यायालय तक का सहारा लिया। मगर उन्हें कहीं से सपोर्ट नहीं मिली। उनके धुर विरोधी और वर्तमान विधायक संजीव शर्मा के राइट हेंड पप्पू पहलवान के चहेते अचल मिश्रा की कोशिशों से उच्च न्यायालय तक यतेंद्र के प्रयासों को झटका लगा और चुनाव संपन्न हुए। मगर, इस चुनाव का लाभ न यतेंद्र को हुआ, न पप्पू पहलवान समर्थक अचल मिश्रा को। जीत का सेहरा तीसरे अवनीश मिश्रा के सिर पर बंध गया।
Society Election से रेजीडेंट थे परेशान
गंगा-यमुना-हिंडन सोसायटी में सालों से चल रही रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को लेकर जो विवाद चला आ रहा था, उसकी वजह से सबसे ज्यादा परेशानी यहां रहने वाले परिवारों को हो रही थी। कई परिवार तो फ्लेट्स को आवास-विकास को सरेंडर करके सोसायटी छोड़कर चले गए थे। तो बहुत से लोगों ने सबसे मजबूत इस सरकारी सोसायटी में इन विवादों के चलते ही कई मर्तबा दी गई सरकारी छूट के बावजूद भी फ्लेट्स खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। यही वजह रही कि सोसायटी के सैकड़ों नहीं बल्कि आधे से ज्यादा फ्लेट्स आज तक खाली पड़े हैं।
सरकारी छूट वाली कई स्कीम्स के बावजूद भी प्राइम लोकेशन वाली इस सोसायटी में लोग आने को तैयार नहीं हैं। लेकिन अब नई आरडब्लूए के हाथ में सोसायटी की देखरेख का जिम्मा जाने के बाद हालातों में कितना सुधार होगा, ये आने वाला वक्त ही तय करेगा।
Society Election के बाद दुश्मन डबल, अब दो गुटों से कैसे निबटेगी नई RWA?

हालांकि पिछली आरडब्लूए यानि यतेंद्र नागर गुट के खिलाफ एक दूसरा गुट सालों से लड़ाई लड़ रहा था, मगर दोनों गुटों की लड़ाई में आरडब्लूए बनाने वाले तीसरे गुट के लिए इसे चलाना आसान नहीं होगा। क्योंकि पहली आरडब्लूए के रास्ते में जहां सिर्फ एक गुट था, वहीं अब वर्तमान आरडब्लूए के रास्ते में दो-दो गुट हैं। एक यतेंद्र नागर वाला तो दूसरा पप्पू पहलवान समर्थक अचल मिश्रा वाला। देखना होगा कि नई आरडब्लूए इनसे कैसे निबटकर सोसायटी की हालत को पहले से दुरुस्त रख पाती है।
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लड़ाई की असली वजह विकास का बजट
सूत्रों की मानें तो गंगा-यमुना-हिंडन सोसायटी में आरडब्लूए को लेकर जो लड़ाई चली आ रही है, उसके पीछे की असल वजह इस सोसायटी के मेंटिनेंस को आवास-विकास से मिलने वाले करोड़ों रुपयों का बंदरबांट है। जानकार बताते हैं कि सोसायटी बायलॉज के मुताबिक हर नई सोसायटी के मेंटिनेंस के लिए सोसायटी बनाने वाली संस्था की ओर से एक रकम दी जाती है।
इस सोसायटी का निर्माण उ.प्र.आवास-विकास परिषद ने कराया है। अरबों की लागत से बनी इस सोसायटी की देखरेख के लिए आवास-विकास को इसके रखरखाव पर खर्च होने वाले करोड़ों रुपये यहां की रजिस्टर्ड आरडब्लूए को देने हैं। लिहाजा उन्हीं पैसों के बंदरबांट को लेकर ये युद्ध चल रहा है।
Society Election के बाद मेंटिनेंस ही सोसायटीज में लड़ाई की बड़ी वजह
गाजियाबाद-दिल्ली और सिर्फ एनसीआर ही नहीं, आज लगभग पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सोसायटी कल्चर है। लिहाजा अधिकांश सोसायटीज में आरडब्लूए को लेकर विवाद चल रहे हैं। ये विवाद जहां इन सोसायटीज में रहने वाले लोगों के लिए मुसीबत बने हैं, वहीं पुलिस और प्रशासन के लिए भी किसी बड़े सिरदर्द से कम नहीं। लेकिन हकीकत ये है कि अधिकांश सोसायटीज में होने वाली इस सिरफुटटव्वल की वजह मेंटिनेंस के पैसे से होने वाली कमाई का बंदरबांट ही है।
जिसे लेकर आए दिन न सिर्फ शिकायतों का दौर चलता है, बल्कि इन पर कब्जा जमाने और अपने बर्चस्व और निजी स्वार्थों को लेकर कोर्ट-कचहरियां तक होती हैं। इस सबका सबसे ज्यादा नुकसान पुलिस-प्रशासन और इन सोसायटीज में रहने वाले लोगों को उठाना पड़ता है।
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