
RDC Victim of Encroachment: इस वक्त जिले में तीन-तीन एक्टिव मोड वाले आईएएस हैं। चाहें बात डीएम की हो, चाहें वीसी की और चाहें नगर आयुक्त की, तीनों की गतिविधियां जो सरकारी मीडिया के माध्यम से गाहे-ब-गाहे सामने आती हैं वो निश्चित तौर पर हैरान करने वाली हैं। रोजाना तीनों ही अफसर किसी न किसी तरह की रूटीन से अलग गतिविधियों के जरिये जिले की स्थिति को बेहतर से और बेहतर करने के प्रयासों में ही जुटे नजर आते हैं। यही स्थिति जिले में मौजूद आईपीएस अफसरों की भी है।
सरकारी मीडिया यानि पुलिस के जरिये जो समाचार मीडिया को मिलते हैं वो यही बताते हैं कि जिले में तैनात आईपीएस अफसरों की देखरेख में हालातों में पहले से बहुत बेहतर और सकारात्मक सुधार हो रहे हैं। लेकिन एक सवाल मन में कोंध रहा है जिसे काफी वक्त से इंतजार कर रहा था कि जिले के किसी मीडिया वाले द्वारा उठाया जाएगा। मगर ऐसा नहीं हुआ, तो सोचा चलों मैं छोटा ही सही मगर मीडिया वाला तो हूं और इस मुद्दे को मैं ही उठा दूं।
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लिहाजा पूछ रहा हूं कि आखिर क्या वजह है कि जिस राजनगर डिस्ट्रिक्ट सेंटर यानि RDC को गाजियाबाद का कनॉट प्लेस कहा जाता है वहां अतिक्रमण की भरमार क्यूं है ? तमाम आला अफसरों के आवास राजनगर में ही हैं। अधिकांश सरकारी अफसरों के कार्यालय भी इसी के इर्द-गिर्द हैं। गाहे-ब-गाहे अफसरों का आना-जाना भी इस बाजार में होता है।
मगर यहां दशकों से चला आ रहा अवैध अतिक्रमण क्यों उच्चाधिकारियों को नजर नहीं आता ? ये हाल तो तब है जबकि इस इलाके के विधायक अजीत पाल त्यागी का आवास और कार्यालय भी इसी RDC में है। कई समाचार पत्रों के दफ्तर भी यहां हैं। अधिकांश नामचीन बैंकों की ब्रांच भी यहां हैं। कई ब्रांडेड शोरूम, कंपनियों के दफ्तर भी यहां बने हैं। मगर यहां का अतिक्रमण किसी को क्यूं दिखाई नहीं देता ?
बहुत महंगा है RDC
बताते हैं कि RDC बहुत ही महंगा इलाका है, यहां किराये पर ऑफिस से लेकर आवास भी लेना हो तो बहुत ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ती है। बावजूद इसके यहां अतिक्रमण की भरमार है। बताने वाले बताते हैं कि यहां मामूली से मामूली ढीया लगाने के लिए भी कम से कम 50 हजार रुपये और हर महीने एक तय रकम देनी पड़ती है। अब ये अतिक्रमण कराकर कौन-कौन से विभाग के अफसर या कर्मचारी पैसे लेते हैं ये तो उच्चाधिकारी ही निष्पक्ष जांच कराएं तो साफ हो। लेकिन लोगों का कहना है कि निमग-जीडीए और पुलिस तीनों ही विभागों में इस अतिक्रमण के जरिये होने वाली अवैध कमाई का बंदरबांट होता है।
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पार्किंग एरिया में चल रहा करोड़ों का कारोबार
RDC इतना महंगा इलाका है कि यहां की पार्किंग में भी ढीया मिल जाए तो बड़ी बात है। यही वजह है कि सिर्फ इस इलाके की पार्किंग से ही करोड़ों का कारोबार लोग कर रहे हैं। अब इसमें चाहें अवैध गाड़ियों की मरम्मत का काम हो, खाने-पीने के स्टॉल हों या फिर गाड़ियों की डेंटिंग-पेंटिग। इस पॉश इलाके में गाड़ियों की सेल-परचेज का धंधा ही कई कारोबारी सिर्फ पार्किंग एरिया का इस्तेमाल करके चला रहे हैं।
अफसर-कर्मचारी ही नहीं नेता-जनप्रतिनिधियों का भी संरक्षण
ऐसा नहीं है कि दिल्ली के कनॉट प्लेस से तुलना की जाने वाली इस मार्केट की इस हालत के जिम्मेदार सिर्फ विभागों के अफसर या कर्मचारी ही हैं, बल्कि इसमें बराबर का योगदान कुछ राजनेताओं, जनप्रतिनिधियों का भी है। जिनके संरक्षण में अवैध अतिक्र्मण करके इस नामचीन बाजार को अतिक्रमण ने घेरा हुआ है।
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मीडिया वाले भी हैं शामिल
RDC जैसे भव्य व्यवसायिक इलाके को बनाने के पीछे पुराने अफसरों की मंशा यही थी कि इस पुराने शहर से अलग पॉश और कोठियों वाले इलाकों राजनगर, कविनगर में रहने वाले लोगों को एक शानदार बाजार दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर दिया जाए। सूत्रों का दावा है कि पुराने अफसरों ने उसी मंशा के तहत इस बाजार को विकसित किया। यहां पार्किंग और चौड़ी सड़कों का निर्माण कराया। ग्रीनरी का भी ध्यान रखा गया। मगर निजी स्वार्थवश अतिक्रमण कराने वालों और अतिक्रमण करने वालों को संरक्षण देने वालों ने इस माक्रेट का अस्तित्व भी लगभग खत्म कर दिया है।
सिर्फ शराबियों का अड्डा बनकर रह गया है RDC
कभी इस इलाके में अंसल्स बिल्डिंग में एक शराब का ठेका हुआ करता था। मगर अब ठेके भी बढ़ गए और यहां चलने वाली दुकानों और दफ्तरों में काम करने वाले लोगों के लिए इलाके में बनी सरकारी बार के अलावा चल रही अवैध शराब पिलाने की दुकानें मुसीबत बनी हैं।
आलम ये है कि इस इलाके की पार्किंग में शाम ढलते ही नहीं बल्कि दिन में भी शराबखोरी देखी जा सकती है। रसूखदारों पर तो पुलिस का चाबुक चल नहीं पाता। मगर, यदा-कदा चैकिंग में जो मिल जाते हैं वो पुलिसकर्मियों के लिए भी सुविधा शुल्क कमाने का जरिया बने हैं। लिहाजा कभी सख्त एक्शन लिया ही नहीं जाता। यही कारण है कि इस इलाके में बहुत सारी बिल्डिंग खाली भी पड़ी हैं।
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