Ghaziabad Bjp-Bsp: भाजपाई रंग में बसपाई, क्या इसीलिए गड्ढे में जा रही बहुजन समाज पार्टी

Ghaziabad BJP-BSP

ऊपर जो तस्वीरें आपको दिखाई दे रही हैं। उसमें योगी सरकार के मंत्री और गाजियाबाद के प्रभारी मंत्री असीम अरुण के साथ पूर्व बसपा जिलाध्यक्ष विनोद प्रधान, बसपा की बामसेफ के विधानसभा प्रभारी डॉ, राम किशोर गौतम सपत्नीक योगी सरकार के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार नरेंद्र कश्यप के साथ और बसपा के पूर्व सभासद रोहताश व अन्य बसपा से जुड़े लोग दिखाई दे रहे हैं।
गाजियाबाद में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के इन समेत कई प्रमुख नेताओं और पदाधिकारियों का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं, मंत्रियों और विधायकों के साथ बढ़ती नजदीकी का यह मामला राजनीतिक गलियारों में गरमा-गरम बहस का विषय बन गया है। यह स्थिति कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है, विशेषकर बसपा के भविष्य और उसके जनाधार को लेकर। आइए, इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं:

1. "भाजपाई रंग में रंगे बसपाई" का मतलब:

  • बढ़ती निकटता: बसपा के नामचीन और पुराने नेता व पदाधिकारी अब खुलकर भाजपा नेताओं के साथ दिख रहे हैं।
  • मंच साझा करना: वे भाजपा के कार्यक्रमों में न केवल मंच साझा कर रहे हैं, बल्कि सार्वजनिक रूप से उनके साथ नजर आ रहे हैं।
  • व्यक्तिगत मेलजोल: भाजपा नेताओं को अपने आवासों और कार्यालयों पर बुलाकर उनका स्वागत-सत्कार कर रहे हैं। यह एक औपचारिक या राजनीतिक मुलाकात से बढ़कर व्यक्तिगत संबंधों की ओर इशारा करता है।

2. इसके पीछे के संभावित कारण:

  • राजनीतिक अवसरवादिता/भविष्य की तलाश: बसपा का लगातार कमजोर होता जनाधार और चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन इन नेताओं को भाजपा में एक बेहतर राजनीतिक भविष्य तलाशने के लिए प्रेरित कर रहा होगा। सत्ताधारी दल के साथ जुड़ना उनके लिए व्यक्तिगत लाभ (जैसे पद, प्रभाव या ठेके) का रास्ता खोल सकता है।
  • बसपा की आंतरिक कलह या निराशा: हो सकता है कि ये नेता बसपा के भीतर की नीतियों, नेतृत्व या आंतरिक कलह से संतुष्ट न हों। बसपा में खुद को उपेक्षित महसूस करना भी एक कारण हो सकता है।
  • भाजपा की रणनीति: भाजपा विभिन्न दलों के प्रभावी नेताओं को अपने पाले में लाकर अपने जनाधार को मजबूत करने की रणनीति पर काम करती है। बसपा के नेताओं को अपने साथ जोड़ना भाजपा के लिए गाजियाबाद में अपने प्रभाव को और बढ़ाने का एक तरीका हो सकता है, खासकर दलित और पिछड़े वर्ग के वोटों को आकर्षित करने के लिए।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: ये नेता अपने-अपने क्षेत्रों में बसपा के लिए कभी महत्वपूर्ण थे। भाजपा उन्हें अपने साथ लाकर उन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहेगी।

3. बसपा के जनाधार और अस्तित्व पर सवाल:

यह सबसे महत्वपूर्ण और चिंताजनक सवाल है।

  • जनाधार का क्षरण: जब पुराने और प्रमुख नेता दूसरे दलों से मेलजोल बढ़ाते हैं या उन्हें छोड़कर जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पार्टी के स्थानीय जनाधार को कमजोर करता है। इन नेताओं के साथ उनके समर्थक और कार्यकर्ता भी अक्सर जुड़ जाते हैं।
  • संगठनात्मक कमजोरी: नेताओं का इस तरह दूसरे दलों की ओर झुकाव बसपा के संगठन में एक बड़ी कमजोरी का संकेत है। यह दिखाता है कि पार्टी अपने काडर और नेताओं को एकजुट रखने में विफल हो रही है।
  • अस्तित्व का संकट: यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो गाजियाबाद में बसपा का अस्तित्व गंभीर खतरे में पड़ सकता है। एक समय जो पार्टी दलितों और बहुजन समाज की आवाज मानी जाती थी, वह धीरे-धीरे अपनी पहचान और प्रभाव खो सकती है।
  • राजनीतिक शून्य: यदि बसपा का जनाधार और अस्तित्व समाप्त होता है, तो यह उस वर्ग के लिए एक राजनीतिक शून्य पैदा करेगा जिसका बसपा प्रतिनिधित्व करती थी।

गाजियाबादी बसपाईयों को नसीहत

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गाजियाबाद में बसपा नेताओं का भाजपा नेताओं के साथ बढ़ता मेलजोल बसपा के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह न केवल पार्टी के जनाधार के लगातार सिकुड़ने का संकेत है, बल्कि इसके संगठनात्मक ढांचे और भविष्य के अस्तित्व पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। यदि बसपा नेतृत्व इस स्थिति पर गंभीरता से ध्यान नहीं देता और अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाता, तो गाजियाबाद जैसे महत्वपूर्ण जिले में उसका राजनीतिक वजूद और कमजोर पड़ सकता है।

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