
History-sheeter की कहानी: यादवजी के यहां से बोल रहा हूं। लालाजी शाम तक पांच पेटी का इंतजाम कर लो। लालाजी के मुंह से सिर्फ निकला जी साहब । ये हालात आज से करीब ढाई दशक पहले तक गाजियाबाद ही नहीं बल्कि वेस्टर्न यूपी से लेकर दिल्ली-हरियाणा तक में थे। वो यादवजी नाम किसी और का नहीं डीपी यादव का हुआ करता था। ये अलग बात है कि कुछ मामलों को छोड़ कभी किसी की हिम्मत पुलिस तक जाने की नहीं हुई।
आज एक वीडियो देखा यूपी सरकार में पूर्व मंत्री रहे डीपी यादव का। वो डीपी यादव जो उस जमाने में बाहुबली थे, मगर आज वीडियो से पता चला कि उन्हें अपने और परिवार के लिए पुलिस की सुरक्षा चाहिए। सुरक्षा भी उस पुलिस से मांगी जा रही है जो कभी ठेंगे पर हुआ करती थी।
हालाकि पूर्वमंत्री ने अपनी और परिवार की सुरक्षा के लिए गृह-मंत्रालय से लेकर पुलिस अफसरों तक से गुहार लगाई है और वजह बताई है अपने और परिवार के साथ पूर्व में हुई घटनाओं के साथ-साथ हाल ही में पकड़े गए एक गैंग की जिसने पुलिस को पूछताछ में बताया है कि वो डीपी यादव की हत्या की साजिश रच रहे थे। अब फैसला उच्चाधिकारियों और गृहमंत्रालय को लेना है कि सुरक्षा देने की जरूरत है या नहीं।
न जानने वालों के लिए डीपी यादव(History-Sheeter)
डीपी यादव के बारे में जो इस बेल्ट के पुराने बाशिंदें हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं है। मगर जो नये हैं तो उन्हें बता दें कि गाजियाबाद के कविनगर थाने से डीपी यादव बी.श्रेणी के History-Sheeter हैं। हालाकि वो अपने खिलाफ चलने वाले केसों का हवाला देकर अपनी हिस्ट्रीशीट को खत्म करने की मांग भी कर चुके हैं। मगर नियम है कि बी.श्रेणी के History-Sheeter का रिकॉर्ड पुलिस के बहीखाते से उसकी मौते के बाद ही हटाया जाता है।
लिहाजा डीपी यादव को नहीं जानने वाले ये जान गए होंगे कि डीपी यादव किस स्तर के नेता, कम बाहुबली और अपराधी रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अपराध और राजनीति का रिश्ता पुराना है। कई ऐसे नाम हैं जिनका दबदबा कानून से ज्यादा उनके नाम का खौफ था, और उनमें से एक नाम है डीपी यादव। एक समय में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में यादव का सिक्का चलता था। सत्ता, ताकत और जुर्म के इस ताने-बाने में, डीपी यादव का नाम खौफ का पर्याय बन गया था। खाकी को कभी ठेंगे पर रखने वाले यादव आज उसी पुलिस से अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं।
अतीत: अपराध और राजनीति का संगम
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराध की स्याह रात में एक ऐसा दौर था जब डीपी यादव का नाम लेना भी डर का कारण बन जाता था। गाजियाबाद के कविनगर थाने में बी श्रेणी के History-Sheeter रहे यादव का अपराध रिकॉर्ड लंबा-चौड़ा है। वह एक ऐसा नाम है जो न केवल अपराध बल्कि राजनीति में भी कदम बढ़ाने में सफल रहे। भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी जैसी बड़ी पार्टियों ने अपने समय में यादव को गले लगाया। डीपी यादव विधायक, सांसद और यहां तक कि यूपी की सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
सारी पार्टियों ने गले लगाया

सपा-भाजपा और बसपा तीनों ही पार्टियां डी पी यादव को उनके चढ़ती के दौर में गले लगा चुकी हैं। यानि साहब तीनों ही बड़ी पार्टियों में रह चुके हैं। चुनाव लड़ चुके हैं। बड़े सदनों के जनप्रतिनिधि बनने के साथ यूपी की सरकार में मंत्री तक रह चुके हैं। लेकिन समय का फेर देखिए कि आज न सत्तारूढ़ पार्टी और न विपक्षी दल कोई डीपी यादव को तवज्जो देने को तैयार नहीं । आलम आप समझ ही चुके हैं कि अपनी सुरक्षा के लिए भी गुहार लगानी पड़ रही है।
IAS के बेटे की हत्या पड़ी भारी
दरअसल, डीपी यादव का रसूख सिर चढ़कर बोल रहा था। मगर इसी बीच उनके बेटे विकास और भांजे विशाल ने बहन भारती के क्लासमेट नीतीश कटारा नाम के इंजीनियरिंग के छात्र की हत्या कर दी। उस मामले में डीपी के पीछे पड़ी आईएएस लॉबी के आगे बाहुबली डीपी की एक न चली और आखिरकर अर्श से फर्श पर आना पड़ा।
बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट, मौत के बाद होगी खत्म
मई 2022 में डीपी यादव ने गाजियाबाद के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों से मिलकर गुहार लगाई थी कि कविनगर थाने में खुली उनकी हिस्ट्रीशीट जिसका नंबर 63-बी है उसे बंद कर दिया जाए। बताया गया कि अपने खिलाफ लिखे सभी मुकदमों से वो बरी हो चुके हैं। लेकिन अफसरों ने कानूनी अड़चन बताते हुए इंकार कर दिया था। दरअसल, पुलिस रूल्स के हिसाब से बी श्रेणी के अपराधी की हिस्ट्रीशीट उसकी मौत के बाद ही खत्म की जा सकती है। हालाकि डीपी यादव ने खुद के बूढ़ा होने का जिक्र भी अपनी लिखित याचिका में किया था, मगर History-Sheeter आज भी जस की तस है।
महेंद्र भाटी हत्याकांड–और भी बहुत लगे दामन पर दाग
गौतमबुद्धनगर के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या का मामला यादव के जीवन का एक ऐसा काला अध्याय है जो कभी नहीं मिटा। इस हत्याकांड के दोषी ठहराए जाने के बाद यादव को जेल जाना पड़ा, जहां उन्होंने लंबा समय बिताया। हालांकि उच्च न्यायालय ने बाद में उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इसके बाद वे अपने पैतृक गांव ग्रेटर नोएडा के सर्फाबाद में रहने लगे, मगर उनका राजनीतिक कद घटता चला गया।
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