
Vaishya Couple Suicide Case: नाना पाटेकर और डिंपल कपाडिया की क्रांतिवीर फिल्म तो आपने देखी ही होगी। नहीं देखी तो बता देता हूं। उस फिल्म में हिन्दू-मुसलमान के नाम पर होने वाले एक दंगे में एक परिवार की महिला की मौत होती है। महिला की मौत से उसके मासूम बच्चे अनाथ हो जाते हैं और माहौल धर्म-मजहब को लेकर बिगड़ जाता है। दोनों पक्षों की पंचायत में होती है। किरदार के रूप में डिंपल कपाडिया लोगों को जाति-धर्म, मजहब से ऊपर इंसानियत का पाठ पढाती हैं। तब ही एक शख्स जाति-धर्म, बिरादरी के नाम पर खड़ा होकर डिंपल कपाडिया को तमाचा जड़ता है। उसे अपने बच्चों के पास ले जाकर पुछवाता है कि बताओ तुम्हारी मां को किसने मारा। बिन मां के मासूम बोलते हैं हिन्दू ने। ये सुनते ही शख्स डिंपल कपाडिया पर बिगड़ता है। बताता-समझाता है फर्क जात-बिरादरी का। अपने-पराये का।
इसी बीच नाना पाटेकर जाति-धर्म का ज्ञान देने वाले शख्स से पूछते हैं कि इन मासूमों को जाति-धर्म मजहब का ज्ञान किसने दिया ? नाना पूछते हैं कि क्या जिस धर्म पर आरोप है उसके परिवार ने कभी तुम्हारी मदद नहीं की ? इतने पर भी समझ न आने पर नाना पाटेकर पहले अपनी फिर उस मुस्लिम किरदार वाले की अंगुली फोड़कर दोनों के खून को मिलाते हैं। उससे पूछते हैं कि बता इसमें कौन सा खून हिंदू का, कौन सा मुसलमान का है ? इसी बीच दो नेताओं की एंट्री होती है। दोनों अलग-अलग धर्मों के पेरोकार होते हैं। उनके साथ होती है मीडिया यानि कि मेरी बिरादरी।
नाना पाटेकर कहते हैं कि देखों आ गए राजनैतिक रोटियां सेकने वाले। नाना कहते हैं कि मीडिया वाले कल इनके हिसाब से अखबार में खबर-फोटो छापेंगे। दृश्य में और भी बहुत कुछ होता है। लिखना या बताना नहीं चाहता। क्योंकि आप सोचने लगेंगे कि क्या पागल आदमी है ? जो खबर के नाम पर दशकों पुरानी फिल्म की स्टोरी लिखकर पढ़ा रहा है।
जी हां ! ऐसा कर रहा हूं वो सिर्फ इसलिए कि आपको याद दिला वो सब। क्योंकि उस फिल्म और उस जैसी न जाने कितनी ही फिल्मों के जरिये किरदारों ने हमें जाति-धर्म, मजहब और बिरादरियों के नाम पर जहर घोलने वालों से आगाह करने का काम किया। मगर, हम उस जहर में आकंठ डूबते ही चले जा रहे हैं।
नतीजा आपके सामने है कि जिस जिले का सांसद वैश्य हो, जिस जिले की महापौर वैश्य हो, जिस जिले में पूर्व राज्यसभा सांसद से लेकर एमएलसी तक वैश्य हों, जिस जिले में वैश्य समाज से विधायक भी हों। जिस जिले में सीएम योगी-पीएम मोदी से निकटता रखने वाले वैश्य नेताओं की भरमार हो, जिस जिले में वैश्य समाज के ख्याति प्राप्त और राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले लोग और उनकी संस्थाएं हों, वहां एक वैश्य दंपति दबंगों, राजनीति, अपराधिक और ब्याज माफियाओं के साथ खाकी का गठजोड़ होने की वजह से प्रताड़ित होकर आत्महत्या कर लेते हैं।
अपने पीछे अपने एक दिव्यांग बच्चे को बिन मां-बाप का जीवन भर रहने को मजबूर हो जाते हैं। मगर, किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। सिर्फ अपना नफा-नुकसान सोचकर ऐसी बिरादरी के ठेकेदार मुंह पर टेप लगाकर बैठ जाते हैं।
शालीमार गार्डन Suicide Case: समाज के ज़मीर पर सवाल
गाज़ियाबाद के शालीमार गार्डन में हाल ही में एक वैश्य दंपति ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने 12 पेज का सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें अपने दर्द और प्रताड़ना का खुलासा किया। यह केस न केवल समाज के लिए बल्कि खाकी और सत्ता के गठजोड़ के लिए भी एक आईना है।
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दंपति की आत्महत्या के पीछे ये वजहें सामने आईं:
- खाकी और राजनैतिक दबाव: दिल्ली पुलिस के एक एसीपी, ठाकुर बिरादरी से जुड़े अफसर और हरेंद्र खड़खड़ी जैसे अपराधियों का गठजोड़।
- अपराधियों की सुरक्षा: राजनीतिक और सामाजिक रसूख वाले गुनहगारों को बचाने के लिए पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की।
- वैश्य समाज की चुप्पी: जिस समाज ने वैश्य दंपति को गौरवांवित महसूस कराया, वही उनकी मौत के बाद चुप बैठा रहा।
क्या हुआ इस डबल Suicide Case में?
शालीमार गार्डन के पॉश इलाके में रहने वाले इस दंपति ने प्रताड़ना से तंग आकर अपनी जान दे दी। पुलिस ने तीन एफआईआर दर्ज कीं, लेकिन मामला केवल कागजों में सिमटकर रह गया।
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- मामले में शामिल लोग: दिल्ली पुलिस के एक एसीपी, हरेंद्र खड़खड़ी, और सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोग।
- पुलिस की कार्रवाई: पुलिस ने धेर्य नेगी और श्याम सिंह नाम के दो आरोपियों को गिरफ्तार किया, लेकिन असली गुनहगार आज भी खुलेआम घूम रहे हैं।
वैश्य समाज का दोहरा चेहरा
जिस समाज में वैश्य सांसद, विधायक, और महापौर हों, जहां अग्रसैन महाराज के नाम पर तमाशे किए जाते हों, उसी समाज के दंपति को न्याय दिलाने में नाकाम रहने का दर्द सवाल खड़ा करता है।
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दंपति के सुसाइड नोट में क्या लिखा था?
- 12 पेज के सुसाइड नोट में दंपति ने अपने समाज, रिश्तेदारों और अधिकारियों को उनकी चुप्पी के लिए जिम्मेदार ठहराया।
- दंपति का दिव्यांग बच्चा अब अनाथ हो चुका है।
मीडिया की भूमिका: 'भांडगिरी' या सच का आईना?
जैसा कि क्रांतिवीर में नाना पाटेकर ने कहा था, मीडिया आज नेताओं और अफसरों की कठपुतली बन चुकी है। इस डबल Suicide Case को भी लोकल और नेशनल मीडिया ने एक दिन की खबर बनाकर भुला दिया।
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क्या मीडिया का धर्म निभाना चाहिए था?
- मीडिया का काम सच्चाई को सामने लाना है, लेकिन यहां इसे दबाने का प्रयास हुआ।
- वैश्य समाज से जुड़े पत्रकार और संस्थाएं भी इस मामले में मौन हैं।