ADVOCATE PROTEST : अपना ही केस हारे, काले कोट वाले

Advocate Protest

Update on Advocate Protest: बचपन से सुनता आ रहा था वकीलों की एकजुटता की दास्तां। मिसालें दी जाती थीं वकीलों के आंदोलनों की। अफसरशाही हो, सत्ता हो या फिर खाकी वाले, सबके मुंह से सुनता रहा कि काले कोट वालों से मत अटकना। मधुमक्खी का छत्ता हैं। लेकिन 45 बरस की उम्र में जो महसूस कर रहा हूं वो बयां कर पाना बेहद मुश्किल है। पिछले 37 दिन से चल रही वकीलों की हड़ताल वीरवार को आखिरकार खत्म हो गई।

वकीलों के मुताबिक उनकी एक बात को न्यायाधीश ने मान लिया है। वो ये कि वकीलों पर आंदोलन के दौरान दर्ज हुए सभी मुकदमें वापस लिए जाएंगे। लेकिन बड़ा सवाल ये कि बाकी की मांगों का क्या ? कोर्ट परिसर में वकीलों पर लाठियां बरसाने वाले पुलिस वालों का क्या ? वकीलों के साथ अभद्रता करने वाली उस घटना के जिम्मेदार अफसरान का क्या ? जिनके तबादले की मांग को लेकर 37 दिन तक न चाहते हुए भी तंगहाली के बावजूद सैकड़ों वकील इस आंदोलन में शामिल हुए केवल काले कोट के सम्मान की खातिर ?

गौतमबुद्धनगर के वकीलों ने ली चुटकी

गौरतलब है कि पिछले दो दिन से गौतमबुद्धनगर के वकीलों का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में गौतमबुद्दनगर के वकील एक अधिकारी को अपना ज्ञापन देते हुए कह रहे हैं कि हमें गाजियाबाद के वकील मत समझना यदि एक वकील को हाथ लगा तो दो पुलिस वाले बिछा देंगे। जाहिर है कि ये चुटकी गाजियाबाद के वकीलों के लगातार असफल हो रहे आंदोलनों को लेकर ही की गई है, जिसे खुद वकील ही सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं।

लगातार हार रहे वकील

हालाकि ये पहला मौका नहीं है जबकि अपनी एकजुटता और रसूख के लिए पहचानी जाने वाली गाजियाबाद बार एसोसिएशन को मुंहकी खाते हुए अपने आंदोलन को खत्म करना पड़ा है। बल्कि इससे पहले भी पिछले चार साल में ये कई बार हो चुका है।

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बेंच को लेकर आंदोलन

साल 2001 में हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर गाजियाबाद के वकीलों ने आंदोलन शुरू किया था। ये आंदोलन हड़ताल और तरह-तरह के विरोध प्रदर्शनों के रूप में वेस्टर्न यूपी के 22 जिलों तक पहुंचा। चार महीने चले इस आंदोलन को सिर्फ सप्ताह में एक दिन के काम बंद तक सिमटा दिया गया। मगर, बेंच छोड़िए वकील ही कहते हैं कि स्टूल तक नहीं मिला।

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एसपी सिटी मारपीट मामला

आपको ध्यान होगा कि गाजियाबाद में एसएसपी वैभव कृष्ण के कार्यकाल में विजयनगर के अकबरपुर-बहरामपुर में डीसी गौतम नाम के एक वकील के साथ पहले ढाबे पर मारपीट हुई थी। फिर विजयनगर थाने में पुलिसकर्मियों ने उन्हें पीटा था। प्रकरण को लेकर तत्कालीन एसपी सिटी आकाश तोमर के साथ वकीलों की मारपीट होने पर पुलिस ने वकीलों को कचहरी परिसर में ही दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। 28 दिन हड़ताल चली। मगर, बगैर कोई मांग पूरी हुए वकीलों का आंदोलन खत्म हो गया।

बार अध्यक्ष की जूनियर से मारपीट मामला

बीते साल तत्कालीन बार अध्यक्ष राकेश त्यागी कैली की जूनियर महिला अधिवक्ता के साथ हापुड़ में कथित मारपीट को लेकर गाजियाबाद और हापुड़ के वकीलों ने हड़ताल औऱ आंदोलन किया था। करीब डेढ़ महीने हड़ताल चली। लेकिन पहले गाजियाबाद के वकीलों ने फिर हापुड़ के वकीलों ने भी बगैर मांगे पूरी हुए कामकाज शुरू कर आंदोलन खत्म कर दिया था।

ऐसे खत्म हुआ Advocate Protest

गौरतलब है कि गाजियाबाद के जिला न्यायालय में 29 अक्तूबर को हुए लाठीचार्ज के विरोध में चार नवंबर से हड़ताल चल रही थी। 37 दिन बाद हड़ताल समाप्त हो गई। बार अध्यक्ष दीपक शर्मा ने बुधवार को वीडियो जारी कर कहा कि 22 वकीलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने जनपद न्यायाधीश अनिल कुमार से मुलाकात की। दोनों पक्षों की वार्ता में एक-दूसरे के गिले-शिकवे दूर हुए।

इसके बाद जनपद न्यायाधीश ने आश्वासन दिया कि वकीलों पर दर्ज सभी मुकदमे वापस लिए जाएंगे। बार सचिव अमित नेहरा के मुताबिक बुधवार दोपहर तीन बजे जनपद न्यायाधीश और अन्य न्यायिक अधिकारियों की उपस्थिति में वकीलों के साथ हुई वार्ता में न्यायिक अधिकारियों ने खेद प्रकट किया है। आश्वासन दिया है कि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति को पूरी तरह से रोका जाएगा।

ये तो 37 दिन पहले भी हो जाता

हड़ताल खत्म होने के फैसले से हालाकि अधिकांश वकील राहत महसूस कर रहे हैं. मगर, अधिकांश का यही कहना और मानना है कि जब केवल खेद प्रकट करने भर से ही ये विवाद खत्म होना था तो 37 दिन काम बंद रखकर कानूनी प्रक्रिया को बाधित कर खास-ओ-आम को परेशान करने की जरूरत ही क्या थी?

करीब 4 लाख मुकदमे हुए प्रभावित

हड़ताल की वजह से जिले की अलग-अलग अदालतों में चल रहे मुकदमों की सुनवोई लगभग बंद थी। सीबीआई कोर्ट में चल रहे अहम मुकदमों सहित अलग-अलग अदालतों में चल रहे लगभग चार लाख मुकदमों में तारीख पर तारीखें लग रही थीं। इनमें से अधिकांश मुकदमे ऐसे थे, जिनमें गवाही और बयान दर्ज होने थे।

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ऐसे हुआ था विवाद

29 अक्तूबर को जिला जज की अदालत में एक केस के मामले में अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान पूर्व बार अध्यक्ष नाहर सिंह यादव और जनपद न्यायाधीश के बीच कहासुनी हुई थी। सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच हुई बहस के बाद पुलिस ने वकीलों पर लाठी चार्ज कर दिया था। इसके विरोध में वकील चार नवंबर से धरना देकर प्रदर्शन कर रहे थे।

वकीलों की ये थी मांग

  • जिला जज को निलंबित कर तबादला किया जाए।
  • लाठीचार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों पर FIR हो, उनके तबादले हो।
  • लाठीचार्ज में घायल वकीलों को मुआवजा मिले।

हाईकोर्ट ने भी लगाई फटकार

बुधवार को हाईकोर्ट ने कहा कि हालात कैसे भी हों, अदालत के दरवाजे न्यायिक अधिकारियों और वादकारियों के लिए बंद नहीं हो सकते। न्याय के लिए वादकारियों को दर-दर भटकने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद में चल रही वकीलों की हड़ताल पर सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि अगर ऐसा करते हैं तो वादकारी मुकदमे की बहस खुद करें। उन्हें जिला जज के परामर्श से जिला प्रशासन पुलिस सुरक्षा मुहैया कराए।

इस याचिका पर बोला हाईकोर्ट

यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार की अदालत ने आशुतोष कुमार पाठक की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। गाजियाबाद के जिला जज और वकीलों के बीच उपजे विवाद के चलते वकील न्यायिक कार्य से विरत हैं। इस कारण किरायेदारी के विवाद में अपील के वैकल्पिक उपचार के बावजूद याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

याची के अधिवक्ता अतुल पांडेय ने दलील दी कि आठ नवंबर के आदेश से सक्षम प्राधिकारी ने मकान मालिक के पक्ष में मकान खाली करने का आदेश दिया है। गाजियाबाद के वकील हड़ताल पर हैं। वैकल्पिक उपचार प्राप्त होने के बावजूद अपील दाखिल नहीं हो पा रही है। लिहाजा, याची को मजबूरन हाईकोर्ट आना पड़ा है। कोर्ट ने वादी को दो हफ्ते में अधिकरण के समक्ष अपील दाखिल करने व पीठासीन अधिकारी को एक हफ्ते में अपील संग दाखिल स्थगन अर्जी को निस्तारित करने का आदेश दिया है।

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