News Nation Dispute : हटाए मीडिया वालों से बोले कमिश्नर-‘मैं छोटा अफसर, मुझसे न हो पाएगा’

News Nation Dispute

News Nation Dispute: नामचीन न्यूज चैनल News Nation का डिस्प्यूट डिप्टी लेबर कमिश्नर के दफ्तर तक पहुंच गया। बिना नोटिस बाहर किए गए कर्मचारी मामले को लेकर गौतमबुद्धनगर के डिप्टी लेबर कमिश्नर से मिले और लिखित शिकायत की। अफसर ने मामले पर सुनवाई शुरू की। जांच के लिए चैनल के दफ्तर टीम भी भेजी। मगर, ये क्या शनिवार को कमिश्नर साहब ने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि मैं तो छोटा सा अफसर हूं, मुझसे कुछ न होगा।

आप ऊपर जाओ या फिर सीएम योगी से बात करो। निराश मीडियाकर्मी अब मामले को लेकर सीएम योगी से मुलाकात कर मामले में कार्रवाई की कोशिश कर रहे हैं।

ये था मामला

नेशनल के साथ-साथ कई रीजनल चैनल चलाने वाले News Nation ग्रुप ने एक ही झटके में महज एक मेल भेजकर सौ से ज्यादा मीडियाकर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अचानक बिना किसी नोटिस के इन सौ से ज्यादा मीडिकर्मियों के परिवारों के सामने न सिर्फ नई नौकरी तलाशने की चुनौती खड़ी हो गई, वहीं बगैर वेतन परिवार की जिम्मेदारियों, बैंकों की ईएमआई समेत तमाम समस्याएं खड़ी हो गई।

लगातार मालिक से लेकर मैनेजमेंट तक से बातचीत के प्रयास करने के बावजूद जब कोई समाधान नहीं हुआ, तो बीती 23 दिसंबर को नौकरी से निकाले गए लोग गौतमबुद्धनगर के डिप्टी लेबर कमिश्नर के यहां पहुंचे और लिखित शिकायत की। शिकायती पत्र में मीडिया कर्मियों ने जिक्र किया कि किस तरह से उन्हें एक झटके में न सिर्फ बेरोजगार कर दिया गया जबकि नियम और कानूनों का खुलकर मजाक बनाया गया। मामले में मीडियाकर्मियों ने चैनल के मैनेजमेंट से बातचीत करके उन्हें नौकरी और वेतन दिलाने की गुहार डिप्टी लेबर कमिश्नर से लगाई थी।

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शनिवार को इसी मामले में कार्रवाई का अपडेट लेने पहुंचे मीडियाकर्मियों को ये कहकर डिप्टी लेबर कमिश्नर ने कन्नी काट ली कि वो छोटे अफसर हैं। बड़े चैनल के खिलाफ कार्रवाई कराने में वे सक्षम नहीं। लिहाजा किसी उच्चाधिकारी या फिर सीधे लखनऊ में सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करें।

पहले एक्शन में थे साहब

बकौल मीडियाकर्मी 23 दिसंबर को जब मीडियाकर्मियों ने इस मामले को लेकर डिप्टी लेबर कमिश्नर के यहां लिखित शिकायत की थी, तब विभाग ने मामले को न सिर्फ गंभीरता से लिया। बल्कि प्रकरण में दो सदस्यीय टीम बनाकर जांच के लिए चैनल के दफ्तर भी भेजी थी। इस कार्रवाई के बाद पिछले दिनों ही चैनल के एचआर हेड रोहित कुमार तिवारी समेत चैनल के अधिवक्ता को भी लेबर ऑफिस में बुलाया गया। मगर, अचानक शनिवार को वार्ता का तय वक्त होने के बावजूद चैनल की ओर से कोई लेबर ऑफिस नहीं पहुंचा।

मीडिया कर्मियों की मानें तो उच्चाधिकारियों को चैनल के मालिक से लेकर एडिटर इन चीफ तक सभी जिम्मेदार लोगों के नंबर भी मुहैया कराए गए। मगर, अधिकारियों ने किसी से न आने का कारण तक पूछने की जेहमत नहीं उठाई। उल्टा वहां पहुंचे बेरोजगार मीडियाकर्मियों को ही नसीहत देकर वापस भेज दिया।

न News Nation वाले बात कर रहे, न अफसर

इस मामले में News Nation के जिम्मेदार लोगों से बातचीत के प्रयास हमारे द्वारा किए गए। लेकिन अपना पक्ष रखने के लिए कोई भी उपलब्ध नहीं हो सका। जबकि यही स्थिति डिप्टी लेबर कमिश्नर कार्यालय की भी रही। मामले में विभाग का अधिकारिक बयान जानने की कोशिश की गई। मगर बात नहीं हो पाई। यदि खबर के प्रकाशन के बाद भी कोई अपना पक्ष हमें बताएगा तो हम उसे भी प्रकाशित करेंगे।

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कौन सुनेगा बेरोजगार मीडियाकर्मी की गुहार ?

ये सिर्फ महज News Nation का ही मामला नहीं है। बल्कि इससे पहले भी नामचीन मीडिया घराने इस तरह के फैसले लेकर मीडियाकर्मियों को एक झटके में बेरोजगार करते रहे हैं। लेकिन आम जन मानस की परेशानियों को शासन-प्रशासन तक पहुंचाने वाली इस बिरादरी के साथ होने वाले उत्पीड़न पर सुनने वाला कोई नहीं है।

रसूखदार मालिकों की पहुंच के आगे काम करने वाले कर्मचारी मीडिया कर्मी न्याय के लिए अफसरशाही, राजनेता, जनप्रतिनिधियों से लेकर कोर्ट तक धक्के खाते रहते हैं। मगर, कानूनी पेचीदगियों का फायदा उठाकर रसूखदार मीडिया घरानों के संचालक मीडिया कर्मियों के साथ लगातार अन्याय करते आ रहे हैं।

बड़ा सवाल ये है कि जिन सौ से ज्यादा मीडिया कर्मचारियों को नियम विरूद्ध एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया उनकी और उनके परिवारों के सामने पैदा हुए रोजी-रोटी के संकट में उनकी गुहार कौन सुनेगा ? अफसरशाही ने तो हाथ खड़े कर दिए। अब गुहार लगाएं भी तो किससे ?

घर कैसे संभालें, लंबी लड़ाई कैसे लड़ें ?

एक झटके में बेरोजगार हुए इन मीडिया कर्मियों के सामने कई समस्याएं एक साथ मुंह बाये खड़ी हो गई हैं। सबसे पहले परिवार चलाने का संकट, फिर नौकरी तलाशने की टेंशन, और उसके बाद यदि चैनल वापस नहीं लेता है तो कानूनी लड़ाई जो न जाने कितनी लंबी हो उसे लड़ने पर होने वाले खर्च और उसमें लगने वाले वक्त की टेंशन।

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