
Western UP: महंगाई, भ्रष्टाचार, विकास और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों से पहले से ही विपक्ष के निशाने पर चल रही योगी सरकार के लिए वेस्टर्न यूपी में वकीलों से पंगा महंगा साबित हो सकता है। उप-चुनाव 20 नवंबर को होना है। ऐसे में दशकों पुरानी हाईकोर्ट बेंच की मांग की अनदेखी और वेस्टर्न यूपी के तीन जिलों में कमिश्नरी सिस्टम लागू करके काले कोट वालों के पेट पर लात मारने वाली योगी सरकार से पहले से ही वकील नाराज थे। उस पर गाजियाबाद में जिला जज की कोर्ट में उनपर लाठीचार्ज और अब एक ही दिन में दो-दो एफआईआर वकीलों पर दर्ज करके गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट ने बीजेपी के लिए उप-चुनाव में बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है।
जाहिर है कि वेस्टर्न यूपी की जिन सीटों पर उप-चुनाव हो रहा है, वहां बीजेपी को वकीलों की भारी नाराजगी से दो-चार होना पड़ेगा। इस नाराजगी से बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ-साथ स्थानीय नेताओं को निबटने के लिए कितने पापड़ बेलने होंगे ये तो आने वाले दिनों में ही साफ होगा। मगर ये तय है कि विपक्षी दलों के लिए ये किसी संजीवनी से कम नहीं
आज ही दर्ज हुई हैं दो FIR

गौरतलब है कि कुछ रोज पहले गाजियाबाद में वकीलों औऱ जिला जज के बीच विवाद हुआ था। उस विवाद में पुलिस के लाठीचार्ज करने से नाराज वकील जहां दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, वहीं जिला जज के खिलाफ भी एक्शन लेने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। मंगलवार को उसी आंदोलन के तहत वकीलों के रोड जाम के दौरान हुई घटनाओं को लेकर पुलिस ने दो लोगों की तहरीर पर वकीलों के खिलाफ दो केस दर्ज किए हैं। इससे वकील खासे नाराज हैं। जाहिर है कि ये नाराजगी गाजियाबाद में कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ सकती है।
वकील कमिश्नरेट सिस्टम से पहले ही नाराज
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आधी सदी से ज्यादा बीतने के बावजूद हाईकोर्ट बेंच की मांग को अनदेखा किया गया है। इस बात से पहले से ही नाराज वेस्टर्न यूपी के वकीलों के रोजी-रोजगार की राह में गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर और आगरा में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने से बड़ा संकट खड़ा हो गया है। जिससे वकीलों में पहले से ही आक्रोश है। छोटे-मोटे मामलों को थाना और पुलिस अफसरों के कार्यालयों औऱ कोर्ट में ही बगैर वकील निबटाने से जाहिर है कि वकीलों को आर्थिक क्षति हुई है।
Western UP में लगातार आंदोलन के बाद भी न पुलिस पर एक्शन, न ज्यूडिशरी पर कार्रवाई
Western UP में वकील लगातार आंदोलन कर रहे हैं। हड़ताल के साथ-साथ विरोध में वकील रास्ता जाम भी कर रहे हैं। इसके बावजूद न तो वकीलों के मुताबिक उन पर लाठीचार्ज करने वाले पुलिसकर्मियों पर ही कोई एक्शन हुआ है, और ना ही उनकी निगाह में दोषी ज्यूडिशरी के अफसरों पर। जाहिर है कि इस बात से वकीलों की नाराजगी लगातार बढ़ रही है। जो निश्चित तौर पर सरकार, प्रशासन औऱ वेस्टर्न यूपी में हो रहे उप-चुनाव पर असर डाल सकती है।
आधी सदी बीत गई बेंच की मांग को
Western UP में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग 1967 से चली आ रही है। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने वकीलों से कहा था कि हां कर दूंगा, लेकिन मामला लखनऊ में फंस जाएगा। वह पेंच आज तक फंसा हुआ है। इसमें किसी भी केंद्रीय मंत्री या सांसद ने अभी तक बेंच की स्थापना की पहल नहीं की है। सरकारें आईं-गईं मगर पूरब की राजनीति में उलझकर इस मांग को दरकिनार किया जाता रहा।
800 कि.मी. तय करनी पड़ती है दूरी
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन 75 प्रतिशत मुकदमे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के हैं। Western UP के वादकारी को लगभग 800 किलोमीटर की दूर तय करनी पड़ती है। इस कारण सुलभ और सस्ता न्याय नहीं मिल पा रहा। लगातार वेस्टर्न यूपी के जिलों के वकील इस मांग को दोहराते रहे हैं और हर शनिवार काम से विरत भी रहते हैं, मगर न केंद्र सरकार के कान पर जूं रेंग रही न प्रदेश सरकार के।
एक तारीख पर खर्च होते हैं 10 हजार
स्थानीय वकीलों की मानें तो एक बार हाईकोर्ट जाने में एक मुवक्किल के कम से कम दस हजार रुपये खर्च होते हैं, जबकि आने जाने में दो दिन का समय और परेशानी अलग से होती है। इलाहाबाद पहुंचने पर जैसे ही वहां के लोगों के पता चलता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए हैं, तो किसी भी चीज का दोगुना पैसा वसूलते हैं। अगर कोई अधिकारी मुकदमे में पेश होता है, तो उसका खर्चा सरकारी कोष से जाता है, लेकिन अधिवक्ता और मुवक्किल को स्वयं खर्च करना पड़ता है।
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