खत्म हुई तकरार : जारी रहेगी वकीलों की अनिश्चितकालीन हड़ताल

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Dispute is Over: हड़ताल को लेकर वकीलों के बीच शुरू ही तकरार के चलते बार एसोसिएशन के एक धड़े ने बार की वरिष्ठ उपाध्यक्ष शबनम खान को अध्यक्ष घोषित करके कामकाज ठप कर रखा था। गुरुवार को वकीलों के दोनों गुटों के बीच आखिरकार आपसी सहमति बन गई और दीपक शर्मा को दोबारा बार का अध्यक्ष स्वीकरते हुए दोनों गुटों के वकील एक हो गए। तय हुआ है कि जिला जज की अदालत में हुए लाठीचार्ज-तोड़फोड़ और आगजनी की घटना के बाद से चल रहा वकीलों का आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक कि उनकी सारी मांगें मान नहीं ली जातीं।

ये हुई थी रार

गौरतलब है कि तीन दिन पहले बार एसोसिएशन गाजियाबाद के अध्यक्ष दीपक शर्मा और सचिव अमित नेहरा की ओर से 3 हफ्ते तक आंदोलन को टालने का ऐलान कर दिया गया था। इस घोषणा के बाद कचहरी केंपस में आंदोलन स्थल से तंबू हटा दिया गया। मगर, वकीलों और बार एसोसिएशन के टकराव की वजह से वकीलों के एक गुट ने काम शुरू नहीं होने दिया। एक दिन पहले ही नाराज गुट के लोगों ने दीपक शर्मा की जगह वरिष्ठ उपाध्यक्ष शबनम खान को नया अध्यक्ष घोषित कर दिया था।

जाहिर है कि काम पर लौटने के बार पदाधिकारियों के फैसले पर वकीलों का एक धड़ा नाराज था। बार एसोसिएशन की तरफ से सोमवार को किए गए इस ऐलान के बाद से उपजे इस विवाद को आज वकीलों ने आपसी सुलह के बाद खत्म कर दिया।

हड़ताल खत्म करने की ये बताई थी वजह

बार अध्यक्ष और सचिव ने दावा किया था कि महज तीन हफ्तों के लिए आंदोलन को टाला गया है। ताकि कोर्ट में लंबित होने वाले केसों की सुनवाई कराई जा सके। और कामकाज ठप होने की वजह से जेलों में पड़े लोगों को जमानत पर या अन्य माध्यमों से बाहर निकलने का मौका मिल सके। आंदोलन वापसी का फैसला कार्रवाई का आश्वासन मिलने पर लेने की बात कही गई थी।

3 हफ्ते बाद फिर आंदोलन का था वायदा

बार के पदाधिकारियों का कहना था कि यदि उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया जाता है, तो एक बार फिर से न सिर्फ कामकाज ठप किया जाएगा। बल्कि पहले से ज्यादा जोरदार तरीके से आंदोलन छेड़ा जाएगा। गौरतलब है कि वकील मुख्य रूप से गाजियाबाद के जिला जज को हटाने औऱ उनके खिलाफ एक्शन लेने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा वकीलों की मांग है कि उन पर लाठीचार्ज करने और कराने में जो भी पुलिसकर्मी या अफसर दोषी हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो। वकीलों की एक मांग ये भी है कि उनके खिलाफ जो मुकदमें लाठीचार्ज की घटना वाले दिन या आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए हैं, वो भी वापस लिए जाएं।

सवाल : क्या मानी जाएंगी वकीलों की सारी मांग ?

हालाकि वकीलों के हड़ताल वापस लेने के फैसले पर रार खत्म हो गई है और कामकाज ठप है। वकीलों का साफ तौर पर कहना है कि उनकी मांगे नहीं मानी गई तो कामकाज ठप ही रहेगा। लेकिन सवाल बड़ा है कि क्या वकीलों की जिला जज, दोषी बताये जा रहे पुलिस कर्मियों-अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होगी ? सवाल ये भी कि क्या पुलिसकर्मियों और ज्यूडिशरी के अफसर-कर्मियों के तबादले करके ही मामले को शांत किया जाएगा। गौरतलब है कि तबादले की प्रक्रिया कोई एक्शन नहीं बल्कि सरकारी महकमें में ये सामान्य प्रक्रिया है। यदि केवल तबादले होते हैं तो क्या वकील संतुष्ट होंगे ये सवाल भी बड़ा है, जिसका जवाब तीन हफ्ते बाद पता चलेगा।

मुकदमें खत्म होंगे, तबादले भी

गाजियाबाद के कई वरिष्ठ अधिवक्ता भी ये मान रहे हैं कि शासन स्तर पर ये तो संभव है कि वकीलों पर दर्ज मुकदमें वापस ले लिए जाएं। ये भी हो सकता है कि पुलिसकर्मियों और ज्यूडिशरी में भी अफसरों के तबादले कर दिए जाए। मगर, लगता नहीं कि कोई ठोस एक्शन किसी भी न्यायिक या पुलिस अफसर पर लिया जाएगा। सीनियर वकीलों का कहना है कि केवल मुकदमें वापस होने और तबादले करने पर वकील संतुष्ट होंगे या नहीं ये भी तीन हफ्ते बाद ही साफ हो पाएगा। जाहिर है कि इस विवाद का पटाक्षेप होगा या नहीं ये तीन हफ्ते बाद ही साफ हो पाएगा।

हड़ताल खत्म हो, तो मिले राहत

पिछले कई हफ्ते से चल रही हड़ताल यदि खत्म हो जाती तो, इसमें शक नहीं कि सभी को राहत मिलती। चाहें वकील हों, वादकारी हों या फिर पुलिस और ज्यूडिशरी। जाहिर है कि हड़ताल की वजह से न सिर्फ पहले से लंबित मुकदमों के अंबार से घिरी ज्यूडिशरी पर काम का बोझ बढ़ रहा है। वहीं जेलों में बंद होने वाले लोगों की तादात भी लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही केवल कचहरी के कामकाज से जीविका चलाने वालों के सामने भी परिवार की जीविका चलाने का संकट बना है।

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