
Sanjeev Sharma, जो गाजियाबाद में बीजेपी प्रत्याशी है, इन दिनों अपने विरोधियों और पार्टी की अंतर्कलह का सामना कर रहे हैं। पार्टी के भीतर ही एक धड़ा उनके खिलाफ माहौल बनाने में लगा है। गुटबाजी और आपसी मतभेदों से संजीव शर्मा पूरी तरह वाकिफ हैं, लेकिन उनका फोकस सिर्फ उन नेताओं और समर्थकों पर है, जिनका अपने इलाकों में प्रभावी जनाधार है। संजीव की यह रणनीति उन्हें चुनावी मैदान में मजबूती दे सकती है, मगर इसमें चुनौतियां भी कम नहीं हैं।
लाईनपार के नेताओं से मनमुटाव
लाईनपार क्षेत्र में कुछ बीजेपी नेता Sanjeev Sharma के खिलाफ खड़े हैं, जिनमें के.के. शुक्ला, देशराज देशी, जयनंद शर्मा, ज्ञानेंद्र शर्मा, और संतराम यादव प्रमुख हैं। इन नेताओं का पार्टी में लंबे समय से प्रभाव है, और यदि ये Sanjeev के साथ नहीं आए, तो उनके अभियान को धक्का लग सकता है।
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केके शुक्ला से मतभेद
Sanjeev Sharma ने अपना नया आवास प्रताप विहार में बनाया है, जो बीजेपी के क्षेत्रीय नेता रहे के.के. शुक्ला के घर के पास है। केके शुक्ला ने कुछ समय पहले पार्टी छोड़कर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और अब Sanjeev के साथ उनका संवाद सीमित है। शुक्लाजी ने न तो संजीव के गृह प्रवेश कार्यक्रम में भाग लिया, न ही उनके प्रचार में नजर आए। इससे साफ है कि शुक्ला के साथ एक दूरी बनी हुई है।
संजीव को पता है कि इस दूरी का असर उनकी छवि पर पड़ सकता है, इसलिए उन्होंने खुद को उनके क्षेत्र के ब्राह्मण वोट बैंक के करीब दिखाने के लिए वहां अपना निवास बनाया। साथ ही समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सिंघराज को चुनौती देने के लिहाज से भी वह आवास खासा उपयुक्त है।
ब्राह्मण समाज का समर्थन– Sanjeev Sharma के लिए चुनौती
हालांकि Sanjeev Sharma अकेले ब्राह्मण उम्मीदवार हैं, लेकिन उनकी अपनी बिरादरी के संगठनों का उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा। अब तक केवल भारतवंशीय ब्राह्मण समाज ने ही उनकी सहायता की घोषणा की है। संजीव अपनी बिरादरी के बीच मतभेदों को ध्यान में रखते हुए रणनीति बना रहे हैं, ताकि वे सभी ब्राह्मण संगठनों को जोड़ सकें। यह रणनीति उनके लिए प्रभावी हो सकती है, परंतु इसके लिए संजीव को इन संगठनों तक अपनी पहुंच बढ़ानी होगी।
संतराम यादव की नाराजगी का कारण
Sanjeev Sharma ने अपने प्रचार के दौरान प्रताप विहार में पूर्व पार्षद महेंद्र पाल शर्मा से मुलाकात की थी। यह मुलाकात संतराम यादव के विरोधी होने के कारण संतराम को नागवार गुजरी। संतराम ने अब तक संजीव के किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया है, लेकिन संजीव को अच्छी तरह पता है कि संतराम की इलाके में वोटर्स के बीच छवि कुछ खास नहीं है, जबकि महेंद्र पाल शर्मा एक मजबूत राजनीतिक छवि रखते हैं और कई चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना दबदबा दिखा चुके हैं।
इस स्थिति में संजीव ने अपनी रणनीति को साधने के लिए महेंद्र पाल शर्मा से संपर्क साधा ताकि ब्राह्मण वोटर्स का समर्थन उन्हें मिल सके।
देशराज देशी की नाराजगी और उसकी वजह
देशराज देशी, जो केके शुक्ला के पुराने सहयोगी माने जाते हैं, इस कारण से संजीव से दूरी बनाए हुए हैं। उनकी नाराजगी का मुख्य कारण शुक्ला के साथ उनके पुराने रिश्ते हैं। संजीव जानते हैं कि पार्टी में देशराज जैसे वरिष्ठ नेता के समर्थन की कमी उनके लिए कठिनाई उत्पन्न कर सकती है, फिर भी उनकी रणनीति उन लोगों पर केंद्रित है, जिनका अपने क्षेत्रों में मजबूत प्रभाव है।
फोकस में सिर्फ वास्तविक समर्थन
Sanjeev Sharma की चुनावी रणनीति का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि वे केवल कागजी समर्थन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उनका जोर उन नेताओं और समर्थकों पर है, जिनके पास इलाके में असली जनाधार है। संजीव इस चुनावी अभियान में उन सभी नेताओं से दूरी बना रहे हैं, जो महज अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तक सीमित हैं। वह सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ हैं जिनका अपना समर्थक आधार है और जो चुनावी जीत में उनके लिए मददगार साबित हो सकते हैं।
आखिरी 12 दिनों की योजना
Sanjeev Sharma के पास चुनाव से पहले के 12 दिन बचे हैं, और इन दिनों का उपयोग वह अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों से समर्थन जुटाने के लिए कर सकते हैं। संजीव के समर्थकों का कहना है कि वह अपने विरोधियों को साधने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। पार्टी के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उन्हें लगातार कार्य करना होगा।
जनता तक पहुंचने का प्रयास और सोशल मीडिया की अहमियत
संजीव अपने प्रचार अभियान में सोशल मीडिया का भी भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वह हर छोटे-बड़े कार्यक्रम की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करते हैं, ताकि युवा वर्ग और नए मतदाताओं तक उनकी पहुंच हो सके। साथ ही, वह अपने समर्थकों के साथ नियमित रूप से बातचीत कर रहे हैं और जमीनी स्तर पर मतदाताओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं।
संजीव का सीधा मैसेज-कुछ भी हवा-हवाई नहीं चाहिए
Sanjeev Sharma के लिए यह चुनावी मुकाबला बहुत ही दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। अपनी पार्टी में गुटबाजी से निपटने के लिए संजीव की रणनीति स्पष्ट है – वे कागजी कार्यकर्ताओं पर निर्भर नहीं हैं बल्कि उन नेताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिनके पास प्रभावशाली जनाधार है। एक अनुभवी राजनेता के तौर पर संजीव इन सभी मतभेदों को खत्म करने के लिए कोशिश कर रहे हैं ताकि वह अपने चुनावी अभियान को मजबूती के साथ आगे बढ़ा सकें। अब देखने वाली बात यह होगी कि उनकी यह रणनीति उन्हें गाजियाबाद में बीजेपी का परचम लहराने में कितनी कारगर साबित होती है।