
Kuldeep Talwar: बचपन से घंटाघर चौक पर बनी शहीद भगत सिंह की प्रतिमा को देख रहा हूं। जब भी वहां से गुजरता हूं तो उस प्रतिमा पर लिखी पंक्तियों को पढ़ना नहीं भूलता। जिस पर लिखा है कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, शहीदों का बस यही बाकी निशां होगा। जो हाल शहीद भगत सिंह की प्रतिमा का देखता आ रहा हूं, कमोवेश आज वही हाल हिंडन तट पर देखा जाने-माने पत्रकार और Kalamkaro के भीष्म पितामह Kuldeep Talwar की अंतेष्टि के वक्त।
महज एक खबर भी ठीक से नहीं लिख पाने वाले और संपादक और अखबारों के मालिक बने वो लोग तक वहां नहीं थे, जो रोज छुटभैये नेताओं को वरिष्ठ नेता बताकर उनके पेज भर-भर कर फोटो छापते हैं। जो अपने को इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया का नामचीन बैनर वाला पत्रकार कहलाते नहीं थकते। इतना ही नहीं दुर्भाग्य देखिए कि कोई राजपत्रित अधिकारी तो छोड़िए जिले के सूचना अधिकारी तक वहां नदारद थे।
शायद ही कोई बड़ा और नामचीन अखबार या चैनल रहा हो, जिसने अपना सम्मान और हैसियत बढ़ाने के लिए Kuldeep Talwar के लेख और उनके इंटरव्यू न छापे, न दिखाए हों। मगर किसी के पास उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने का वक्त ही नहीं था। और तो और छोड़िए आज शहर में ही छपने वाले कई अखबारों ने तो तलवार साहब की मृत्यु का समाचार तक प्रकाशित नहीं किया। ये देखकर एहसास हो रहा है कि कैसे सत्ता, राजनेताओं और अफसरशाही का महिमामंडन करने में लगे लोग पत्रकारिता को भूल व्यवसायीकरण में मसरूफ हो गए हैं।
ये रहे हिंडन पर मौजूद
सुभाष चंद्रा, प्रमोद शर्मा, रवि अरोड़ा, अजय औदिच्य, अशोक ओझा, मदन पांचाल, अजय रावत, अजय जैन, योगेश कौशिक, मुकेश सिंघल, आशुतोष गुप्ता, रिंकू, वरिष्ठ कवि स्वर्गीय कृष्ण मित्र के पुत्र व लेखक हिमांशु लव, बब्बर सिंह, वरिष्ठ छायाकार अशोक शर्मा, राहुल शर्मा।
आवास पर पहुंचे ये लोग
आलोक यात्री, सलामत मियां, संजीव वर्मा, अशोक शर्मा, सोबरन सिंह, मुकेश गुप्ता, रिंकू।
जनप्रतिनिधियों को भी नहीं मिला वक्त
इसे पत्रकार बिरादरी की वर्तमान हैसियत से जोड़ूं या फिर जनप्रतिनिधियों की सोच से कि छोटे-मोटे कार्यक्रमों में भी फीता काटने के लिए पहुंचने वाले जिले के सांसद से लेकर किसी विधायक या मंत्री को तो छोड़िए मेयर या पार्षदों को भी कुलदीप तलवार की मौत पर उनके घर पहुंचने या फिर उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए हिंडन घाट पहुंचने का वक्त नहीं मिला। हिमांशु लव को नेता मान ले, जनप्रतिनिधि या लेखक केवल एक वही थे जिनकी मौजूदगी रही।
न जाने कितनों की सिफारिशें की, वो भी भूले
Kuldeep Talwar दशकों से मीडिया से जुड़े लोगों को बेहद प्यार करते थे। ऐसे लोगों की तादात 10-20 नहीं बल्कि सैकड़ों में है जिन्हें तलवार साहब की सिफारिश पर मीडिया संस्थानों में अच्छी नौकरियां मिलीं। ऐसे भी बहुत से लोग हैं जिनकी नौकरी पर लटकी तलवार को भी कुलदीप तलवार के एक फोन ने हटा दिया। बावजूद इसके अफसोस है कि उनके पास भी तलवार की अंतिम यात्रा में पहुंचने का वक्त नहीं रहा।
लोकल समाचार पत्र भूल गए Kuldeep Talwar को
आज सुबह प्रकाशित हुए कई समाचार पत्रों का अवलोकन किया तो मालूम चला कि अधिकांश ने तो तलवार साहब के निधन की खबर अपने सुधि पाठकों के साथ साझा कर उनसे जुड़े स्मरणों को याद किया। मगर कई अखबार ऐसे भी थे जिन्हें इतने बड़े लेखक, स्तंभकार और वरिष्ठ पत्रकार के निधन पर दो लाईन लिखने का भी वक्त नहीं मिला। इनमें कई मीडिया संस्थान तो ऐसे हैं कि किसी वक्त में उन संस्थानों में काम करना गौरव की बात मानी जाती थी।
लेकिन आज हालत देखिए कि Kuldeep Talwar के निधन का समाचार तक लगाने का भान नहीं रहा। पता चलता है कि इन समाचार पत्रों की कमान कितने पत्रकारिता के जानकार हाथों में पहुंच चुकी है।
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