UP उप-चुनाव में अतुल गर्ग के सांसद बन जाने के बाद खाली हुई गाजियाबाद विधानसभा की सीट पर विधायक बनने का सपना तो 30 लोगों ने कागजों पर संजोया, मगर मैदान में सिर्फ 19 ही बचे हैं। इनमें से भी कितनों के पर्चे रद्द होते हैं और फाइनल राउंड में कितने खिलाड़ी रहते हैं, ये एक-दो दिन में साफ हो जाएगा।
दिलचस्प बात यह है कि Buland Ghaziabad की करीब 20 दिन पहले की गई घोषणा पर बीजेपी पार्टी हाईकमान ने मुहर लगा दी है और टिकट बीजेपी के महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा को मिल गया है। वहीं, समाजवादी पार्टी ने गाजियाबाद सीट से अपने उम्मीदवार के रूप में करीब ढाई दशक पुराने बसपा नेता सिंघराज को मैदान में उतारकर कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेर दिया है और चुनावी गणित को उलट-पलट कर दिया है।
साथ ही, जेल में बंद हिन्दू रक्षा दल के अध्यक्ष पिंकी ठाकुर की पत्नी पूनम और हिंदूवादी नेता सत्यम शर्मा ने भी नामांकन किया है, जिससे बीजेपी को थोड़ा नुकसान पहुंचाने की कोशिश हो रही है।
गाजियाबादी पिच पर ये हैं खिलाड़ी
- भारतीय जनता पार्टी से संजीव शर्मा
- समाजवादी पार्टी से सिंह राज
- बसपा से परमानंद गर्ग
- एआईएमआईएम से रवि कुमार
- हिन्दुस्थान निर्माण दल से पूनम चौधरी
- विजय कुमार अग्रवाल (निर्दलीय)
- शमशेर राणा (निर्दलीय)
- सत्यम शर्मा (निर्दलीय)
- राष्ट्रीय जनलोक पार्टी से धर्मेन्द्र सिंह
- राष्ट्रीय बहुजन कांग्रेस पार्टी से गयादीन अहिरवाल
हर प्रत्याशी की पहली चुनौती: रूठों को मनाना है...जरा देर लगेगी
करीब डेढ़ दशक पहले संजय दत्त की मुख्य किरदार वाली एक फिल्म आई थी। फिल्म का नाम था यलगार। उस फिल्म में एक गाना था। उस वक्त के लोगों का वो पसंदीदा गाना आज अचानक यू-टयूब पर सामने आया तो ये खबर लिखने का ख्याल मन में आया। दरअसल, उस गाने के बोल में एक लाईन थी कि “रूठों को मनाना है….जरा देर लगेगी…..” बरबस ही न जाने क्यों मुझे ख्याल आया तमाम पार्टियों में टिकट को लेकर पिछले कई दिन से मचे घमासान और टिकट अनाउंस होने के बाद अपनी-अपनी पार्टियों से नाराज हुए लोगों का।
चाहें केंद्र-प्रदेश की सत्ता काबिज होने वाली पार्टी कहें या अपना अभेघ दुर्ग बना चुकी पार्टी बीजेपी या कांग्रेस की बात करें या सपा और बसपा के साथ-साथ आजाद समाज पार्टी की….सबके नेता से कार्यकर्ता तक आलाकमान के फैसले से नाराज हैं। कहीं कम कहीं ज्यादा, मगर कमोवेश सभी में ये नाराजगी के चलते रूठने का सिलसिला बना हुआ है। ऐसे में वर्तमान में चुनावी समर में उतर चुके उम्मीदवारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनों को मनाने की है। किस पार्टी में क्या हालात हैं पढ़ें इस रिपोर्ट में।
BJP-संजीव की चुनौती
इसमें कोई शक नहीं कि जबसे संजीव शर्मा ने बीजेपी का दामन थामा है बीजेपी में कोई गॉड फादर न होने के बावजूद अपने काम और अपने व्यवहार के बूते उन्होंने खुद को पार्टी में स्थापित किया। विधानसभा चुनाव हों, लोकसभा चुनाव हों या फिर नगर निगम में चुनावों को लेकर किसी भी तरह का कोई विवाद महानगर अध्यक्ष रहने से पहले से लेकर अध्यक्ष बनने के बाद से अब तक संजीव ने हर कठिन और चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में पार्टी के लिए अपना शत-प्रतिशत दिया।
जनरल बनाम अतुल गर्ग विवाद, निगम कार्यकारिणी सदस्य को लेकर बीजेपी में मचा घमासान हो या फिर हाल ही में चला बीजेपी का सदस्यता अभियान सभी में संजीव ने हाईकमान से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को ये महसूस कराने का काम किया कि उनकी व्यवहार कुशलता और मृदुभाषी कार्यशेली ने कई बड़े विवादों का तत्काल समाधान निकाला है। बावजूद इसके वर्तमान में संजीव शर्मा के सामने भी कुछ अपने ऐसे हैं जिन्हें मनाना गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले अपने लिए वोट मांगने से पहले उनका टिकट फाइनल होने के बाद नाराज हुए कुछ अपनों को मनाने की चुनौती है।
इन रूठे अपनों में सबसे पहला नाम मयंक गोयल का है। मयंक का इसलिए क्योंकि वो उन तीन दावेदारों में सबसे मजबूत थे जिन्हें संजीव ने पछाड़कर टिकट हासिल किया है। इसके बाद दूसरा नाम है अशोक मोंगा का जो बीजेपी में उनके सीनियर होने के साथ-साथ बीजेपी के पूर्व महानगर अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके बाद तीसरा नाम आता है ललित जायसवाल का। ललित जायसवाल न सिर्फ सांसद अतुल गर्ग के व्यवसायिक साझीदारों में रहे हैं बल्कि उनका सिविल डिफेंस सहित कई अन्य समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े होने की वजह से खासा रसूख और वजूद है।
इसके साथ ही संजीव के सामने चुनौती ठाकुर बिरादरी के उन भाजपाईयों को भी मनाने की है जो जनरल साहब का टिकट कटने के बाद से बीजेपी से ही नाराज चल रहे हैं। इसके अलावा वैश्य समाज के बीजेपी कार्यकर्ताओं और बीजेपी के पारंपरिक वोटर्स को मनाना भी संजीव के लिए बड़ी चुनौती है। देखना होगा कि अपनी व्यवहार कुशलता और मृदुभाषी होने के हुनर से वो कैसे (पार्टी) घर में मौजूद अपनों को कैसे मनाते हैं ?
समाजवादी पार्टी-सिंघराज पर मुश्किल भारी
करीब ढाई दशक तक एक पार्टी में रहकर अचानक उसकी धुर विरोधी पार्टी में एंट्री करना और फिर अपने समर्थकों को उसके चुनाव चिन्ह पर वोट डालने के लिए तैयार करना सिंघराज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। करीब ढाई दशक तक अपने समाज (दलित) की सबसे बड़ी हितेषी कही जाने वाली पार्टी बहुजन समाज पार्टी में रहने वाले सिंघराज के सामने मानों चुनौतियों का पहाड़ है।
एक छोटे से इलाके से केबल के कारोबार से खुद को एक मजबूत राजनेता और व्यवसाई के रूप में खुद को स्थापित करने वाले सिंघराज ने हालाकि हर तरह के हालातों को देखा है। जमीन से आसमान तक अपनी राह को चुनौतियों का सामना करके ही तैयार की है, मगर फिलहाल चुनावी समर में वोटर्स के बीच जाने से पहले उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनों को मनाने की है।
सबसे पहले उन अपनों को मनाना सिंघराज के लिए चुनौतीपूर्ण है, जिन्होंने नेताजी यानि मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी के खिलाफ लगातार प्रचार-प्रसार किया। लोगों को खासकर दलित वोटर्स को ये बताने और जताने का काम किया कि बसपा प्रमुख के साथ समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में क्या-क्या दिक्कतें पेश आईं। आज उन्हीं लोगों को समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रचार प्रसार करने के लिए मनाना सिंघराज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
इसके बाद दूसरी चुनौती सिंघराज को समाजवादी पार्टी में ही झेलनी होगी। सिंघराज को अपने नये कुनबे के पुराने लोगों को अपने साथ जोड़ना और चुनाव में उनकी मदद लेना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। ठीक इसी तरह की दिक्कत सिंघराज को समाजवादी पार्टी को समर्थन देने वाले अन्य घटक दलों खासकर कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को अपने साथ प्रचार में मन से जुटने के लिए तैयार करने में भी करनी पड़ेगी।
जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी के चुनाव नहीं लड़ने का फैसला हाईकमान का है, मगर इस फैसले से जिन लोगों के अरमानों पर पानी फिरा है, उनकी नाराजगी बाजिब है। लिहाजा ऐसे नाराज कांग्रेसियों को मनाना और अपने साथ चुनाव प्रचार में लगाना सिंघराज के लिए वोटर्स के बीच जाने से पहले की चुनौती है।
BSP-आसान नहीं डगर परमा ‘आ’ नंद की
फीलगुड बोले तो परम आनंद बसपा के उम्मीदवार परमानंद गर्ग के लिए भी कोई आसान नहीं है। बल्कि परमानंद गर्ग को इसके लिए बहुत सारी चुनौतियों से जूझना होगा। वो भी वोटर्स के बीच जाने से पहले। संजीव और सिंघराज की तरह ही परमानंद गर्ग के सामने भी गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले वोटर्स के बीच जाने से पहले कई बड़ी चुनौतियां हैं।
सबसे बड़ी चुनौती है अपनी बिरादरी यानि वैश्य समाज को साधने की। क्योंकि बीजेपी साथ जुड़े अधिकांश वैश्य समाज को बहुजन समाज पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी पर वोट डलवाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। उधर, वैश्य समाज की करीब एक दर्जन संस्थाओं से जुड़े वी.के.अग्रवाल का निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ना उनकी राह की अपनी बिरादरी का वोट पाने की राह में बड़ी अड़चन है।
इसके बाद गाजियाबाद के सांसद अतुल गर्ग, महापौर सुनीता दयाल और एमएलसी दिनेश गोयल, पूर्व राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल, बीजेपी के बोर्ड सदस्य पवन गोयल सहित बीजेपी के कई पार्षद और पदाधिकारियों का वैश्य समाज से होना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है।
इसके साथ ही परमानंद गर्ग का लंबे समय तक समाजवादी खेमे में रहना और अचानक चुनाव से पहले धुर विरोधी पार्टी बहुजन समाज पार्टी में आना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। सबसे पहले अपनी विचारधारा को बदलना, फिर नई विचारधारा को ग्रहण करके उसके हिसाब से जनता के बीच जाकर वोट मांगना परमानंद की राह में किसी बड़ी अड़चन से कम नहीं।
आसपा-चुनौतियों का भंडार है 'सत्य'पाल की राह में
गाजियाबाद के विजयनगर थाना क्षेत्र के पुराने गांव चिपियाना के सत्यपाल उर्फ सतपाल चौधरी को इस शहर के नये लोग भले ही कम जानते हों, मगर पीपुल टुडे नाम के एक अखबार के जरिये तहलका मचाने वाला शख्स कई पुराने पत्रकारों की प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। सतपाल चौधरी को देहात मोर्चा के जरिये किसान नेता के रूप में पहचान मिली। इसी मोर्चे के जरिये सतपाल चौधरी ने राजनैतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए या यूं कहें कि समाज के हित में अपनी सोच के लिहाज से काम करने की कोशिश की। इस कोशिश में बीजेपी को छोड़ कई राजनैतिक दलों का दामन थामा। खुद भी चुनाव लड़ा, पत्नी को भी लड़ाया, मगर सफलता हाथ नहीं लगी।
सतपाल चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वे जब भी चुनाव लड़ते हैं तो केवल उस पार्टी के वर्कर्स या नेताओं पर निर्भर हो जाते हैं। कई चुनावों का अनुभव और जमीनी जानकारी और अनुभवों के बूते वे किस तरह से फिलहाल अपना जनाधार बनाने की कसरत कर रही आजाद समाज पार्टी के बूते विधायक की कुर्सी तक पहुंच पाएंगे ये सबसे बड़ी चुनौती है। लाईन पार क्षेत्र के होने और कई चुनाव लड़कर अनुभव हासिल करने वाले सतपाल चौधरी के सामने लाईन पार क्षेत्र से ही एक और उम्मीदवार सिंघराज बड़ी चुनौती बन गए हैं।
वोटर्स के लिहाज से गाजियाबाद विधानसभा के विधायक का भाग्य तय करने की कूवत रखने वाले लाईनपार क्षेत्र में पिछले काफी समय से मेहनत कर रहे सतपाल के लिए सिंघराज का समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के समर्थित उम्मीदवार के रूप में उतर जाना बड़ी चुनौती है। जाहिर है कि एससी वोट बैंक के मामले में लाईन पार क्षेत्र गढ़ है। ऐसे में एससी समाज से लाईन पार क्षेत्र का रहने वाला एक उम्मीदवार बड़े राजनैतिक दलों के साथ चुनाव मैदान में उतर जाना सतपाल चौधरी के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को अपने कई चुनावों के अनुभवों के आधार पर सतपाल चौधरी कैसे निबटते हैं ये चुनावी नतीजे ही साफ करेंगे।


