
Satyapal Chaudhary Interview: बीजेपी को उसके अभेघ कहे जाने वाले दुर्ग यानि गाजियाबाद विधानसभा में पटखनी देने के लिए जहां विपक्षी दलों के प्रत्याशियों में दलित-मुस्लिम वोटों को लेकर होड़ मची है, वहीं आजाद समाज पार्टी से चुनाव लड़ रहे Satyapal Chaudhary का दावा है कि इस बार चुनाव बीजेपी हार रही है और उसे हराने के लिए उन्हें समर्थन मिल रहा है हर वर्ग और समुदाय का। उनका कहना है कि सर्वे से भी ये साफ हो चुका है कि 85 फीसदी जनता बीजेपी को हटाना चाहती है। लिहाजा उसके विकल्प के रूप में इस बार उन्हें हर समाज और तबके के लोग सहयोग और समर्थन कर रहे हैं।
Satyapal Chaudhary हालाकि ये दावा कर रहे हैं कि उनकी किसी से टक्कर ही नहीं है और वे इस बार सीधे विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हुए क्षेत्र के विकास की कमान संभालने जा रहे हैं। मगर हमने कुछ सवाल उनसे किए, पढ़ें कि क्या बोले सत्यपाल चौधरी।
सुनें क्या बोले ASP Candidate Satyapal Chaudhary

प्रश्न 1- आप कह रहे हैं कि आपका इस बार विधानसभा जाना तय है तो आपका फोकस प्रमुख तौर पर किन मुद्दों पर होगा?
उत्तर- मेरे जेहन में ये कुछ चीजें हैं जिन पर सबसे पहले काम करने की जरूरत है,
- लाईनपार क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकारी अस्पताल और स्कूल-कॉलेज का निर्माण।
स्कूल-कॉलेजों में फीस बढ़ोतरी पर लगाम और आरटीई के तहत होने वाले दाखिलों से शत-प्रतिशत लोगों को लाभांवित कराना।
पेयजल, सीवर निकासी, साफ-सफाई, नाली-खड़ंजे, सड़कों की हालत में सुधार के साथ-साथ इलाके में लगने वाले जाम की समस्या को दूर कराना।
हिंडन विहार में बने डंपिंग ग्राउंड सहित बक्फ बोर्ड की जमीनों पर हुए कब्जों से उन्हें मुक्त कराना।
- मॉबलिंचिंग की घटना को अंजाम देने या उन्हें बढ़ावा देने वालों पर अंकुश लगाते हुए इलाके में अमन और भाईचारे का माहौल कायम कराना।
प्रश्न 2- इस चुनाव में सबसे ज्यादा फोकस लाईन पार के साथ दलित-मुस्लिम वोटों पर है। कई उम्मीदवार हैं जो उन पर अपना दावा ठोक रहे हैं आपका दावा क्या है ?
उत्तर- दलित-मुस्लिम वोटों पर जो दावेदारी कर रहे हैं, उनमें बसपा से खड़े परमानंद को कोई नहीं जानता। उन्हें उनकी बिरादरी यानि वैश्य समाज भी वोट नहीं दे रहा। समाजवादी पार्टी से खड़े सिंघराज, पार्षदी का ही चुनाव पिछली बार हार गए थे। इससे ही अंदाजा लगा लें कि उनकी जमीन कितनी मजबूत है। उन्हें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेता ही चुनाव हराने का काम कर रहे हैं। रवि गौतम का कोई जनाधार नहीं है। वो तो कार्यालय खोलने की हालत में भी नहीं हैं। सबसे अहम बात कि उनके साथ कार्यकर्ता ही नहीं हैं।
ये तीनों उम्मीदवार इस बार आठ से 10 हजार में ही निबट रहे हैं क्योंकि चाहें दलित समाज हो या मुस्लिम समाज सभी का विश्वास इस बार आजाद समाज पार्टी और उसके मुखिया चंद्रशेखर पर है।
प्रश्न 3- क्या आपको लगता है कि दलित समाज मायावती के हाथी को छोड़ आपकी केतली का बटन दबा देगा ?
उत्तर- इसमें किसी तरह का कुछ संदेह करने जैसा है ही नहीं। दलित मतदाता बेहद समझदार रहा है। उसने समाज के उत्थान के लिए हमेशा उन समाज के हितेषियों का साथ दिया है जिनसे समाज के पक्ष में कुछ पहले से बेहतर करने की इच्छाशक्ति दिखाई दी है। याद कीजिए बाबा भीमराव अंडेकर से मान्यवर काशीराम और फिर बहन मायावती तक को दलितों ने सिर माथे रखकर दशकों तक मजबूत किया है। मगर पिछले कुछ वक्त से राजनीति में सक्रिय नहीं हो पा रहीं बहनजी का विकल्प आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और दलित समाज के सितारे चंद्रशेखर आजाद के रूप में आज दलित समाज को दिखाई दे रहा है।
कुछ वक्त पहले तक सिर्फ युवा वर्ग ही चंद्रशेखर आजाद के साथ था, मगर अब तो समाज के बुजुर्गों का आशीर्वाद औऱ समर्थन भी चंद्रशेखर आजाद और आजाद समाज पार्टी को भरपूर मिल रहा है। नगीना में चंद्रशेखर आजाद पर दलित और मुस्लिम समाज जो प्यार बरसाया और उन्हें सांसद बनाया, वो इसका जीता जागता उदाहरण है।
प्रश्न 4- तो क्या आप ये कह रहे हैं कि इस बार दलित और मुस्लिम समाज हाथी के आगे वाला बटन नहीं दबाएगा ?
उत्तर- बिल्कुल सही। पिछले चुनाव में बीजेपी के डमी कैंडिडेट केके शुक्ला को टिकट देकर बहुजन समाज पार्टी ने दलित और मुस्लिम समाज को न सिर्फ निराश किया बल्कि ये भी साबित किया कि वो महज बीजेपी को जिताने के लिए दलित औऱ मुस्लिम समाज का वोट खराब कर रही है। यही वजह रही कि शुक्ला को केवल दलित-मुस्लिम समाज का वोट मिला। इसका फायदा बीजेपी उम्मीदवार अतुल गर्ग को मिला और वे चुनाव जीत गए।
दलित और मुस्लिम समाज वोट काटने वाले इन लोगों के झांसे में अब आने वाले नहीं हैं। वो जानते हैं कि इन लोगों को वोट देना केवल बीजेपी को फायदा पहुंचाना है। दलित और मुस्लिम समाज के सामने विकल्प के रूप में सिर्फ एक पार्टी है आजाद समाज पार्टी और सिर्फ एक प्रत्याशी है, Satyapal Chaudhary।
प्रश्न 5- बीजेपी प्रत्याशी संजीव शर्मा अपने साथ कुछ जाट समाज के नेताओं को लेकर घूम रहे हैं, तो क्या उसकी वजह से आपको अपनी ही बिरादरी के वोट का नुकसान उठाना पड़ेगा ?
उत्तर- देखिए जैसा मैने कहा कि इस बार बीजेपी से अधिकांश लोग परेशान हैं और वो विकल्प तलाश रहे हैं। उन्हें विकल्प के रूप में एक इलाके के मंझे हुए और शिक्षित बेदाग छवि वाला प्रत्याशी मिल गया है। दलित-मुस्लिम समाज से लेकर तमाम जाति-बिरादरियों और वर्ग के लोगों का मुझे आशीर्वाद मिल रहा है। रहा सवाल जाट समाज का तो जिन लोगों के साथ संजीव शर्मा घूम रहे हैं उन्हें समाज में जानते ही कितने लोग हैं। उनकी छोड़िए खुद संजीव शर्मा ही बाहरी हैं और केवल चुनाव तक स्वांग करने के लिए एक कोठी में आकर रहना शुरू कर दिया है। चुनाव का नतीजा घोषित होते ही साहब का फिर हिंडन पार जाना तय है।
रही बात अनुभव की तो जितने भी प्रत्याशी इस बार मैंदान में हैं उनमें से किसी को भी न तो राजनैतिक अनुभव के मामले में और ना ही चुनाव के मामले में मुझसे ज्यादा अनुभव है। चुनाव लड़ने का तजुर्बा सिर्फ मेरे पास है। बाकी किसी उम्मीदवार पर नहीं। सिंघराज दो बड़ी पार्टियों के प्रत्याशी जरूर हों, मगर वो आज भी पार्षदी का चुनाव मानकर लगे हैं।
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