Sp उम्मीदवार सिंहराज: दलित समाज जुड़ नहीं रहा साथ, विश्वकर्मा समाज को भी कर दिया नाराज

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SP के हालात:  चुनाव चिन्ह साईकिल से दलित समाज के कतराने और प्रचार की रणनीति के मामले में दलित वोटों के दावेदार अन्य उम्मीदवारों से पिछड़ने की वजह से जहां अभी तक सिंघराज अपने साथ दलित मतदाताओं को ही नहीं जोड़ पा रहे। वहीं अखिलेश सरकार के पूर्व मंत्री रामआसरे विश्वकर्मा के दो दिन तक लाईनपार में रहने के बावजूद वो विश्वकर्मा समाज को अपने साथ जोड़ने की बजाय नाराज कर बैठे। यही नहीं सहयोगी दल कांग्रेस की जिन इलाकों में अच्छी पकड़ है, वहां भी अभी तक सिंघराज के प्रचार की शुरूआत तक नहीं हो पाई है।

उसी का नतीजा है कि दो-दो बड़ी पार्टियों का समर्थन होने के बावजूद सिंघराज सिर्फ साईकिल के भरोसे मुस्लिम वोट और नाम के पीछे जाटव लगा होने के कारण दलित वोटों पर अपनी सबसे ज्यादा दावेदारी मानकर चुनाव में खुद को बीजेपी की टक्कर पर मानने का भ्रम पाले हुए हैं।

ऐसे किया SP ने विश्वकर्मा समाज को नाराज

दरअसल, चंद रोज पहले समाजावादी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राम आसरे विश्वकर्मा सपा हाईकमान के निर्देश पर विजयनगर आए थे। उनका ये गोपनीय दौरा था। इस दौरान उनके रुकने की व्यवस्था प्रतार विहार के एक होटल में की गई थी। यहां उन्हें क्षेत्र में रहने वाले विश्वकर्मा समाज को सपा के पक्ष में मतदान कराने के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी। सपा के ही कुछ लोग बताते हैं कि रामआसरे विश्वकर्मा ने अपने समाज के कुछ स्थानीय लोगों से बात करके एक कार्यक्रम रखवाया। उस कार्यक्रम में अखिलेश सरकार के पूर्व मंत्री तो रहे, मगर खुद प्रत्याशी सिंघराज नहीं आए।

हालाकि पूर्वमंत्री अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इलाके में रहने वाले समाज के लोगों से अपील करके चले गए। मगर विश्वकर्मा समाज से जुड़े लोग ही बताते हैं कि इस कार्यक्रम पर आया सारा खर्चा भी समाज के ही लोगों ने खुद उठाया। ना तो प्रत्याशी ही कार्यक्रम में पहुंचे और ना ही कार्यक्रम पर होने वाला खर्चा ही आयोजकों को मिला। इस बात से विश्वकर्मा समाज सपा प्रत्याशी से नाराज है। हालाकि चुनाव में अभी वक्त है। देखना होगा कि सिंघराज विश्वकर्मा समाज की नाराजगी को दूर कर पाते हैं कि नहीं।

कांग्रेसी इलाकों में नहीं हुआ प्रचार

गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र में हालाकि इस वक्त कांग्रेस का कोई पार्षद नहीं है। मगर, मुस्लिम इलाकों के अलावा कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस का भले ही पार्षद न हो, मगर निगम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों को खासे वोट मिलते रहे हैं। ऐसे इलाकों में शहर के भी कई मुहल्ले हैं तो लाईन पार के भी। मगर, चुनाव में दो रोज बाकी हैं। लेकिन अभी तक सिंघराज को लेकर कांग्रेसियों ने वहां वोट मांगने की जेहमत तक नहीं उठाई है। इसकी एक बड़ी वजह कांग्रेसियों का बेमन से सिंघराज के चुनाव में सहयोग करना है।

हालाकि शुरूआती दौर में सिंघराज के साथ पूर्व मंत्री सतीश शर्मा से लेकर तमाम कांग्रेसी नामचीन चेहरे दिखाई दे रहे थे। मगर जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है सिंघराज से कांग्रेसियों की दूरी बढ़ती जा रही है। जो सिंघराज के लिए अच्छा संकेत तो कतई नहीं मानी जा सकती।

दलित वोटों के अन्य दावेदारों से मिल रही चुनौती

अब बीजेपी को छोड़ दें तो दलित वोटों के इस उप-चुनाव में जो बाकी दावेदार हैं वो भी दलित वोटों में बड़ी सेंधमारी की कोशिशों में लगे हैं। जहां जानकारी मिल रही है कि बसपा उम्मीदवार ने बीएसपी के पुराने और निचले स्तर के केडर पर पूरा ध्यान देते हुए उन्हें दलित मतदाताओं पर फोकस करने में लगा रखा है, तो वहीं रवि गौतम भी ओवेसी की पार्टी के बूते दलितों के साथ-साथ मुस्लिम वोटों में भी खासी घुसपैठ बना रहे हैं। उधर, बात यदि आजाद समाज पार्टी की करें तो एनएच 9 के दूसरी तरफ की बस्तियों और शहर की दलित बस्तियों में आजाद समाज पार्टी का लगातार प्रभाव बढ़ रहा है।

यही नहीं लाईनपार क्षेत्र में आने वाली काशीराम कालोनी जहां सबसे ज्यादा दलित परिवार रहते हैं वहां भी अभी यदि दलित दावेदारों की बात करें तो सिर्फ सतपाल चौधरी और उनके समर्थन में सिर्फ चंद्रशेखर रावण ही प्रचार के लिए पहुंचे हैं। जाहिर है कि इस बात का फायदा भी दलित वोटों के रूप में इस इलाके में सबसे ज्यादा आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार को मिलता दिखाई दे रहा है।

दो दिन में देखिए कौन बदलता है तस्वीर

मतदान में सिर्फ दो दिन औऱ बाकी हैं। लिहाजा ये 20 नवंबर को ही साफ होगा कि अब तक दिख रही तस्वीर में कौन कितना बदलाव कर पाता है। और मतदाताओं के मन में किसकी तरफ झुकान कितना बढ़ पाता है ?

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