UP उप-चुनाव: टिकट की थी आस, सबने तोड़ा विश्वास, नाराज हैं मयंक गोयल

UP by-election: He was hopeful of getting a ticket, but everyone broke his trust, Mayank is upset

UP में पद क्षेत्रीय उपाध्यक्ष पश्चिमी क्षेत्र, सोशल मीडिया पर हैसियत का अंदाजा इसी बात से आम आदमी लगा सकता है कि कवर फोटो पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी स्वयं हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकार कर रहे हैं। महज चार दिन पहले की एक और पोस्ट में ठीक इसी मुद्रा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाहजी जन्मदिन की शुभकामनाएं दोनों हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुए स्वीकार करते नजर आ रहे हैं। लेकिन देखिए साहब इतनी हैसियत-इतने रसूख और इतने दमदार कद के बावजूद पार्टी साहब को टिकट नहीं दे पाई।

आप कंफ्यूज हो रहे होंगे ये सोचकर कि बात किसकी हो रही है। तो बता दूं कि मैं जिक्र कर रहा हूं मयंक गोयल का। वो मयंक गोयल जो हमारी आदरणीय महानगर की प्रथम नागरिक (महापौर) रहीं स्वर्गीय दम्यंति गोयल के साहबजादे हैं। बेचारे हर चुनाव में टिकट के लिए दावेदारी करते हैं। माहौल भी जोर-शोर से बनता है। गाजियाबाद से लखनऊ दरबार तक नाम जोरदार तरीके से पहुंचता है। वहां से दिल्ली तक भी पहुंचता है। मगर दिल्ली में मोदीजी और अमित शाहजी से इतने मधुर संबंध होने के बावजूद नाम पर अंतिम मुहर नहीं लग पाती। अब इसे क्या कहा जाए।

ये महज इत्तेफाक है या फिर कुछ और वजह है इसके पीछे। मयंक गोयल को इस बार तो शत-प्रतिशत टिकट होने का यकीन था। पर्चा भरने की सारी तैयारियां भी वो कर चुके थे, मगर ऐन वक्त पर पूर्व की तरह ही किस्मत की तरह ही उन लोगों ने भी गच्चा दे दिया था जिन्होंने मजबूत पैरवी का भरोसा दिया था। सोशल मीडिया अकाउंट पर लगी फोटो भी काम न आईं। मोदी-शाहजी से मधुर संबंध भी धरे रह गए और टिकट मिल गया संजीव शर्मा नाम के उस शख्स को जिसका न दिल्ली दरबार में कोई रसूख और ना ही लखनऊ में कोई पेरौकार।

सवाल तो बनता है कि क्या संजीव का टिकट महज इत्तेफाकन हुआ है ? क्या मयंक गोयल को हर बार की तरह निराशा के पीछे कोई खास नहीं है ? यदि कोई खास है तो क्या वो इतना रसूखदार कि मोदी-शाह से मधुर संबंध होने का दावा करने वाले मयंक का हर बार आखिरी मौके पर ही विकेट गिरा या गिरवा देता है ? सवाल उठाना लाजमी है कि आखिर कौन है वो जो मयंक गोयल की राजनैतिक महत्वकांक्षाओं की राह में इतना बड़ा रोड़ा बना है कि हर बार सिर्फ निराशा ही निराशा हाथ लगती है।

चुनावी टिकट के लिए निरंतर संघर्ष

मयंक गोयल का यह राजनीतिक सफर कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। उनकी मां स्वर्गीय दम्यंति गोयल भी गाजियाबाद की पूर्व महापौर रही हैं। ऐसे में मयंक ने हर चुनाव में टिकट के लिए अपनी दावेदारी पेश की है। गाजियाबाद से लेकर लखनऊ तक, उनका नाम राजनीतिक गलियारों में गूंजता रहा है। उनकी दावेदारी को लेकर माहौल तो बनता है, लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से अंतिम समय में उनका नाम कट जाता है।

इस बार मयंक को पूरा विश्वास था कि उन्हें टिकट मिलेगा। उन्होंने पर्चा भरने की सभी तैयारियां भी कर ली थीं। लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी ने उन्हें टिकट देने से इंकार कर दिया और वह टिकट संजीव शर्मा नामक एक नए चेहरे को दे दिया। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि हर बार आखिरी मौके पर मयंक का नाम सूची से हटा दिया जाता है?

क्या मोदी-शाह से नजदीकियां ही काफी नहीं हैं?

मयंक गोयल का दावा है कि उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जैसे शीर्ष नेताओं के साथ गहरी नजदीकियां हैं। सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें इस बात का प्रमाण देती हैं। आम तौर पर यह माना जाता है कि पार्टी में शीर्ष नेताओं से करीबी संबंध होने से टिकट मिलने में सहायता मिलती है, लेकिन मयंक के मामले में यह सिद्धांत लागू नहीं होता। हर बार उनकी टिकट दावेदारी की बात सामने आती है, फिर माहौल बनता है, लेकिन जब टिकट देने का समय आता है, तो किसी और को दे दिया जाता है। यह संयोग है या फिर पार्टी के भीतर किसी का विरोध?

कब मिलेगा मयंक गोयल को राजनीतिक पहचान?

मयंक गोयल के पास एक अच्छी राजनीतिक विरासत है, जनाधार है और बड़े नेताओं से करीबी संबंध भी हैं। उनके समर्थक हर बार उनके नाम की घोषणा का इंतजार करते हैं, लेकिन अंत में वही निराशा हाथ लगती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि पार्टी आखिरकार मयंक को कब पहचान देगी? उनके समर्थक और कई विश्लेषक मानते हैं कि मयंक जैसे योग्य उम्मीदवार को टिकट न देकर पार्टी शायद एक बड़ा अवसर गवां रही है। क्या यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा है या फिर इसे मयंक के दुर्भाग्य का परिणाम मान लेना चाहिए?

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