
Commissioner साहब! सीएम योगी ने यूपी के जिन बड़े महानगरों में कानून व्यवस्था के मामले में रामराज लाने की गरज से जिस पुलिस कमिश्नरेट व्यवस्था को लागू कराया था। कम से गाजियाबाद यहां तो वो कारगर साबित नहीं हो पाई है। संदेह नहीं कि जिले में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने से कानून व्यवस्था कई मामलों में बेहतर हुई है। लेकिन बहुत सी ऐसी अव्यवस्थाएं हैं, जो आज भी दशकों पहले वाले ढर्रे पर ही चल रही हैं। बल्कि ये कहें कि पहले से भी ज्यादा खस्ताहाल हो गई हैं।
ये कहने में संकोच नहीं कि आज भी आम जन की निगाह में पुलिस की छवि खाकीवाले …. की ही है। अफसर हो या कर्मचारी आज भी उनका व्यवहार खास हो या आम बगैर रसूख वालों के साथ वही दशकों पुराना है। जिले में पुलिस कमिश्नरेट व्यवस्था लागू होने के बाद की हालिया तस्वीर बताती ये रिपोर्ट पढ़ें।
रसूखदारों की पोस्टिंग आज भी जारी
सरकार चाहें बीजेपी की हो, सपा-बसपा की रही हों मंत्रियों और कुछ खास जाति या बिरादरियों के लोगों की मलाईदार जगहों पर तैनाती का सिलसिला दशकों पहले भी चलता था और आज भी जारी है। भले ही कमिश्नरेट व्यवस्था जिले में लागू हो चुकी है। मगर, आज भी कई मेहनती कोतवाल, थानेदार और अन्य पुलिसकर्मी चार्ज के इंतजार में बैठे रहते हैं जबकि रसूखदार महत्वपूर्ण जगहों पर अपनी तैनाती कराने में कामयाब रहते हैं।
जिले में पुलिसकर्मियों की तादात बढ़ने के बावजूद अपराध और अपराधियों के आगे पुलिस की कमजोर पकड़ उसी का नतीजा है। आलम ये है कि तैनाती में जिन मानकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए उसका पालन न तो पहले किया जाता था और ना ही आज। उसी का नतीजा है कि अपने रसूख की एंठ में टेंठ पुलिसकर्मी जनता के साथ दुर्व्यवहार करने से नहीं चूकते। जिसकी वजह से पुलिस की छवि जनता की निगाह में आज भी जस की तस है।
पुलिस वाहनों में मेंटिनेंस का खेल आज भी
पुलिस कमिश्नरेट से पहले भी जिले में हालात ये रहते थे कि पुलिस वाहनों के मेंटिनेंस चाहें मरम्मत आदि हो या फिर तेल का खर्च वह निर्धारित मानकों के अनुरूप भी पुलिसकर्मियों को नहीं मिलता था। जिसकी वजह से पुलिसकर्मियों को अपने निजी तरीकों से ही उन्हें मैनेज करना पड़ता था। आज भी कमोवेश वही हालात हैं। पुलिस की गाड़ियों पर तैनात ड्राईवर पुलिसकर्मी और डयूटी इंचार्ज के कंधों पर ही गाड़ी के मेंटिनेंस और तेल का जिम्मेदारी है। जिसका नतीजा है कि पुलिसकर्मियों में वसूली की जो परंपरा दशकों से चली आ रही है आज भी वो बदस्तूर जारी है।
रेस्पॉंस टाईम सुधरा, मगर थाने-चौकी का खेल अब भी
इसमें दोराय नहीं कि कमिश्नरेट व्यवस्था बढ़ने से पुलिसकर्मियों और पुलिसकर्मियों के संसाधनों में इजाफा हुआ है। सूचना पर पुलिसकर्मियों के पहुंचने के मामले में या ये कहें कि सूचना पर पहुंचने के मामले में काफी सकारात्मक सुधार हुआ है। मगर, शिकायत मिलने पर पुलिसकर्मियों के पहुंचने पर मौके पर ही लेन-देर करके मामलों को निबटाने या फिर चौकी थाने में ले जाकर सुविधा शुल्क या सिफारिश वालों को तरजीह देने का सिलसिला आज भी कमिश्नरेट सिस्टम से पहले वाला ही है।
इसका ताजा प्रमाण यही है कि आज भी लोगों को न्याय के लिए एसीपी, डीसीपी, एडि.सीपी और पुलिस कमिश्नर के दरवाजे पर गुहार लगानी पड़ती थी। अफसरों के पहले से ज्यादा सुनवाई करने के बावजूद थाने-चौकियों पर सुनवाई नहीं होने से परेशान लोगों की तादात में लगातार इजाफा हो रहा है।
Commissionerate बढ़ने से बढ़ गए काम के दाम
पुलिस अफसर भले की कितना दंभ भरें कि उनके कार्यकाल में बड़ी ही ईमानदारी औऱ मेहनत से पुलिसिंग चल रही है। मगर, आम हो या खास जिले का हर शख्स जानता है कि कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद से पुलिस में काम कराने के सुविधा शुल्क में भारी इजाफा हो गया है।
मोबाइल खोने से लेकर अन्य मामलों में रिपोर्ट दर्ज कराने से लेकर जहां भी सुविधा शुल्क देने की बात आए पत्ता आज भी नहीं खड़कता। उल्टा दामों में कई गुना का इजाफा हो चला है। सड़क पर वाहन चालकों के फोटो खींचकर वाहन को साइड में लगवार ट्रेफिक पुलिसकर्मी आज भी लोगों से यातायात नियमों का पालन नहीं करते पकड़े जाने की सूरत में मांडवाली करते हर चौराहे-तिराहे पर आज भी दिखाई देते हैं।
नहीं सुधरा जाम का झाम
दो साल बीत गए हैं जिले में कमिश्नरेट सिस्टम को लागू हुए। इसमें शक नहीं कि कानून व्यवस्था की ही तरह जिले में ट्रैफिक व्यवस्था के मामले में लगभग जीरो रहने वाले इस जिले में ट्रैफिक रूल्स को फॉलो किया जाने लगा है। दो साल पहले तक हालात ये थे कि लोग दिल्ली और नोएडा में तो ट्रैफिक रूल्स को फॉलो करते थे, मगर गाजियाबाद की सीमा में प्रवेश करते ही उनकी अनदेखी शुरू कर देते थे। मगर, कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद अब दुपहिया चालकों के सिर पर हेल्मेट और चार पहिया वाहनों के चालकों के सीने पर सेफ्टी बेल्ट दिखाई देने लगी है।
जाहिर है कि जिले में ये हालत कमिश्नरेट सिस्टम के बाद ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की चौराहे-तिराहों पर बढ़ी मौजूदगी और यातायात के प्रति लोगों को चाहें चालानों के जरिये की जाने वाली कार्रवाई के डर से ही हुआ मगर सुधार हुआ है। लेकिन इसके इतर जाम का झाम दो साल पहले भी जैसा था आज भी वैसा ही है। जहां ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने और जाम का झाम खत्म कराने के लिए पुलिसकर्मी, अंडरपास, फ्लाईओवर्स की संख्या में इजाफा हुआ, वहीं वाहनों के बढ़ने और अव्यवस्थाओं के चलते आज भी जाम का झाम बरकरार है।
ये भी पढ़े:
- बुलंद गाजियाबाद का सर्वे: झटके कई, मगर संजीव बने सरताज
- जीत के प्रति आश्वास्त संजीव को भीतरघात का एहसास, विरोधियों को पहली पोस्ट से ही करा दिया एहसास
ऐसी और खबरों के लिए हमारे सोशल मीडिया फॉलो करे: Twitter Facebook